SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपासकदशाग एक अनुशीलन 187 ऋद्धि के धारक होने पर भी भगवान महावीर के उपदेशों को सुनकर उन्होंने अपना जीवन पूर्णत: संयमित करते हुए स्वयं तथा पत्नी शिवानन्दा ने पांच अणुव्रत तथा चार शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार का धर्म स्वीकार कर लिया । सच्चे देव, गुरु, धर्म और अन्य तीर्थिको की आराधना स्वीकार कर ली । चौदह वर्ष निर्दोष रीति से पालन करने के बाद समाज के आमंत्रित मित्रों के बीच उन्होंने अपने सबसे बड़े पुत्र को अपने स्थान पर नियुक्त किया और स्वयं ज्ञातकुल की पौषधशाला में चले गये तथा वहां ग्यारह प्रतिमाओं को ग्रहण किया। प्रतिमाओं को धारण करने से उनके शरीर में केवल अस्थिभाग रह गया। अतएव उन्होंने सविधि संथारा कर लिया। शुभ परिणाम की धारा में उन्हें अवधिज्ञान हो गया। इस अवधिज्ञान में वे पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में ५००-५०० योजन तक का लवण समुद्र का क्षेत्र, उत्तरदिशा में चुल्ल हिमवान्-वर्षधर पर्वत तक का क्षेत्र, ऊर्ध्व दिशा में सौधर्म कल्प तक तथा अधोदिशा में रत्नप्रभा नरक में लोलुपाच्युत तक जानने, देखने लगे। उन्हीं दिनों भगवान महावीर अपने गौतमादि शिष्यों सहित वाणिज्यग्राम में पधारे। गौतम स्वामी बेले के पारणा के दिन आनन्द श्रावक को दर्शन लाभ देने हेतु पौषधशाला पधारे। आनन्द श्रावक ने अपने अवधि ज्ञान की चर्चा की। गौतम ने कहा कि गृहस्थ को अवधिज्ञान तो होता है, परन्तु इतना विशाल नहीं हो सकता । अत: तुम आलोचना कर प्रायश्चित्त करो । आनन्द ने प्रत्युत्तर में कहा कि सत्य कथन की आलोचना नहीं होती। आपको मृषा बोलने की आलोचना करनी चाहिए । गौतम को अपने वचन पर शंका हुई । वे प्रभु महावीर के पास पहुंचे, पूरी घटना का जिक्र किया। प्रभु ने कहा- गौतम! तुमने अपने ज्ञान का उपयोग लगाकर नहीं देखा, तुम आनन्द श्रावक के पास जाकर क्षमायाचना करो । गौतमस्वामी ने पारणा बाद में किया, पहले आनन्द के पास जाकर क्षमायाचना की। विनय धर्म की ऐसी मिशाल दुर्लभ है। आनन्द एक मास की संलेखना के पश्चात् आत्म-समाधि अवस्था में देह त्यागकर प्रथम देवलोक के सौधर्मकल्प में अरुण नामक विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्यवन कर, चार पल्योपम की आयु पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध यावत् सभी कर्मों का क्षय करेंगे। (2) कामदेव चम्पा नामक नगरी में कामदेव नामक सुप्रतिष्ठित एवं धनाढ्य गाथापति अपनी आर्या भद्रा के साथ रहता था । उसके पास ६ करोड़ सोनैया सुरक्षित, ६ करोड़ घर - बिखरी में, ६ करोड़ व्यापार में तथा साठ हजार गायें थी। उन्होंने भगवान महावीर के उपदेश सुनकर श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया। चौदह वर्ष के बाद अपना सारा कार्यभार ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर पौषधशाला में रहकर धर्म की आराधना करने लगे। उनकी चर्चा स्वर्ग लोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy