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जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क एक तुलनात्मक अध्ययन
भगवान महावीर और भगवान बुद्ध समकालीन महापुरुष थे और दोनों एक ही क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे। यह ठीक है कि भगवान महावीर का त्याग मार्ग बहुत कठिन था, अत: भगवान महावीर के मार्ग पर चलना प्रत्येक व्यक्ति के लिये शक्य न था, यही कारण है कि जैन संस्कृति को एक सीमित क्षेत्र में ही रहना पड़ गया!
जिस समय भगवान महावीर अपने प्रवचनों द्वारा 'तत्त्वज्ञान' प्रदर्शित कर रहे थे, उसी समय भगवान बुद्ध भी तत्त्वज्ञान के प्रकाशन में लीन थे, दोनों महापुरुष बहुत अंशों में समान तत्त्वज्ञान की बात कह रहे थे और शैली भी दोनों की कहीं-कहीं समान ही हो गई है। स्थानांग सूत्र और अंगुत्तर-निकाय में यह साम्य स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जैसा कि नीचे लिखे उद्धरणों से स्पष्ट हो रहा हैस्थानांग सूत्र (चतुर्थ स्थान)
अंगुत्तर निकाय (चतुर्थ निकाय) चत्तारि उदका पण्णत्ता, तंजहा.
चत्तारो मे भिक्खवे उदकरहदाक तमोउत्ताणे णामेगे उत्ताणोभासी,
चत्तारो?-उत्तानो गम्भीरो भासो, उत्ताणे णामेगे गंभीरो भासी,
गम्भीरो उत्तानोभासो गम्भीरे णामेगे उत्ताणो भासी,
उत्तानो उत्तानो भासो, गम्भीरे णामेगे गम्भीरो भासी।
गम्भीरो गम्भीरो भासो, एवमेव चत्तारि पुरिस जाया
एवमेव खो भिक्खवे चत्तारो
उदक रहयमा पुग्गला। नि. ४-१०४ चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तंजहा
चत्तारो मे....बलाहका, कतमे चत्तारो? गज्जित्ता णाममेगे णो वासित्ता,
गजित्ता नो वास्सित्ता, वासित्ता णाममेगे णो गज्जित्ता,
वास्सित्ता नो गज्जित्ता, एगे गज्जित्ता वि, वासित्ता वि,
नो गज्जित्ता, नो वासित्ता, एगे णो गज्जित्ता, णो वासित्ता।
गज्जित्ता च वास्सित्ता च। एवमेव चत्तारि पुरिसजाया।
एवमेव चत्तारो मे बलाहकूपमा पुग्गला।
निपा. ४-१०१ चत्तारि फला पण्णत्ता, तंजहा
चत्तारिमानि अम्बानि, कतमानि चत्तारि? आमे णामेगे आम महुरे,
आम पक्कवण्णि, पक्के णामेगे आम महुरे,
पक्कं आमवण्णि, आमे णामेगे पक्कमहुरे,
आम आमवणि पक्के णामेगे पक्क महुरे,
पक्कं पक्कवण्णि एवमेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता एवमेव चत्तारि मे अम्बूपमा पुग्गला।
नि.४-१०६ यह पाठ-साम्य और विषय-साम्य का एक निदर्शन मात्र उपस्थित किया है। अंगुत्तर निकाय के अन्य अनेकों पाठों में इसी प्रकार के साम्य को देखा जा सकता है? यद्यपि स्थानांग सूत्र में पुरुषभेद और अंगुत्तर निकाय में पुद्गल भेद प्रदर्शित करता जा रहा है, परन्तु पुद्गल का अर्थ पुरुष भी होता
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