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उद्बोधक कथाएं
३७९ पर पहुंच गया। उस षोडशी कन्या को प्राप्त करने के लिए उसने नटप्रधान के सामने अपना प्रस्ताव रखा। उसके प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए नटप्रधान ने कहा-यदि तुम नटविद्या को सीख जाओ तो मैं सहर्ष अपनी कन्या का विवाह तुमसे कर दूंगा। उसे सीखे बिना तो तुम्हारा वह प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा।
नीतिकार कहते हैं-जहां चाह वहां राह। चाहपूर्ति के लिए व्यक्ति क्या कुछ नहीं करता? उसने उस शर्त को सहर्ष स्वीकार कर लिया। वह तन-मन से सर्वात्मना समर्पित होकर नटविद्या को सीखने लगा। इलापुत्र संकल्प का धनी और बुद्धिसंपन्न नवयुवक था, इसलिए थोड़े ही दिनों में वह नटविद्या में पारंगत हो गया।
इधर नटपुत्री भी नजदीक से उस नवयुवक को परख चुकी थी। दिनों-दिन उसका प्रेम भी युवक के प्रति बढ रहा था। नटविद्या में प्रवीण होने पर इलापुत्र ने पुनः अपनी बात नटकन्या के पिता के सामने रखी। नट ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा-जिस दिन तुम अपनी कला से किसी राजा का मन जीत लोगे अथवा राजा के पुरस्कार से पुरस्कृत हो जाओगे उसी दिन मैं विवाह की रस्म पूरी कर दूंगा। __ इलापुत्र अब प्रतिदिन गांव-गांव और शहर-शहर में अपनी कला का प्रदर्शन करता हुआ प्रचुर धन कमा रहा था। कुछ ही दिनों में वह अपनी कला में लोकप्रिय बन गया। एक बार उसे अपनी कला को दिखाने का राजा की ओर से निमंत्रण मिला। वह अपनी पूरी तैयारी के साथ उस षोडशी कन्या को लेकर रवाना हो गया।
राजभवन का विशाल प्रांगण। सज्जा हुआ भव्य रंगमंच। विशाल मंडप राजासहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों से आकीर्ण था। इलापुत्र रोमांचित करने वाले एक से एक रोचक कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा था। अन्त में उसने ऐसे नाट्य की प्रस्तुति देनी चाही, जो अनेक जोखिमों से भरा हुआ और दर्शकों के दिल को दहलाने वाला था। जमीन में गड़ा हुआ एक मजबूत बांस। उसके ऊपर के छोर पर तीक्ष्ण नोक वाली कील। कील पर अटकाई हुई सुपारी। एकाएक वह इलापुत्र मौत को हथेली में रखकर सरपट गति से उस लम्बे बांस पर चढा। यह देखकर क्षणभर के लिए लोगों का दिल कांप उठा। कुमार ने नाभि को सुपारी पर टिकाकर चक्राकार नृत्य प्रारंभ किया। उसके दाएं हाथ में चमचमाती तलवार थी तो बांए हाथ में ध्वजा। नीचे ढोल-नगाड़े और मधुर वाद्ययंत्र बज रहे
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