________________
उद्बोधक कथाएं व्यक्त की, किन्तु सामने एक ही समस्या थी कि बिना धन के व्यापार कैसे किया जाए? पत्नी ने इधर-उधर से कुछ पूंजी जुटाकर उसको दे दी। उन्हीं दिनों एक सार्थ राजगृह के गुणशीलक उद्यान से वसन्तपुर जा रहा था। कृतपुण्य ने उसी के साथ जाने का निश्चय किया। कहीं सार्थ प्रातः जल्दी प्रस्थान न कर जाए, यह सोचकर वह रात को ही उद्यान में बने चैत्यालय में जा सोया।
राजगृह नगर में चम्पा नाम की एक विधवा सेठानी भी रहती थी। उसके एक पुत्र था। वह चार कुलीन कन्याओं से परिणीत था। उसके कोई सन्तान नहीं थी। एक बार उसका पुत्र व्यापार हेतु परदेश गया। रास्ते में डाकुओं ने उसे मार दिया। चम्पा सेठानी को पुत्र के मारे जाने का समाचार ज्ञात हुआ। उसे एक ओर पुत्र के मारे जाने का शोक था तो दूसरी ओर धन जाने की चिन्ता थी। उस समय की प्रथा के अनुसार सन्तानरहित परिवार का धन राजकोष में चला जाता था। उस भय से चम्पा किसी ऐसे व्यक्ति की खोज में थी, जो उसका घर आबाद कर सके।
खोजती-खोजती वह विधवा सेठानी उसी सार्थ के पास पहुंच गई और सोए हुए कृतपुण्य को उठवाकर अपने घर ले आई। घर पहुंचकर सेठानी अपनी बहुओं के सामने रोने लगी। कारण पूछने पर वह बोलीबहुओ! बचपन में मेरा एक बेटा घर से चला गया था। आज यक्ष ने मुझे बताया कि वह गुणशीलक उद्यान के बाहर चैत्यालय में सो रहा है, इसलिए मैं वहां से इसे सोते हुए को उठवाकर ले आई हूं। अब तुम सब देवाज्ञा से इसे ही अपना पति मानो। यद्यपि बहुओं ने उसके कथन पर विश्वास नहीं किया, किन्तु सास की आज्ञा के सामने उनका वश भी नहीं चल सकता था? कृतपुण्य की जब नींद उड़ी तो उसने अपने आपको किसी अज्ञात स्थान पर पाया। वह घबरा गया। सेठानी ने कुमार को आश्वस्त करते हुए कहा-पुत्र ! तुम यहीं सुखपूर्वक रहो, मेरी इन बहुओं को अपनी पत्नी मानो। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो उसका दुष्परिणाम भी तुम्हें भुगतना होगा। विवशता के सामने कोई उपाय भी नहीं था। उसे तो सेठानी के कथनानुसार चलना था। वह बारह वर्षों तक वहां रहा, कामभोगों का सेवन किया। कालान्तर में उन चारों बहुओं की कुक्षि से एक-एक पुत्र उत्पन्न हुआ। पूर्व में सेठानी का जो उद्देश्य था वह अब सिद्ध हो चुका था। अब उसे कृतपुण्य की जरूरत नहीं थी। सेठानी ने उसे घर से निकालना चाहा। बहुएं नहीं चाहती थीं कि वह उनको छोड़कर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org