________________
३२४
सिन्दूरप्रकर उसे एक भी बैल पसन्द नहीं आया। उसने राजा के रथ में जुतने वाले बैलों भी नापसन्द कर दिया। वह घूमघुमाकर पुनः राजा के पास पहुंचा। राजा ने पूछा-क्या कोई पसन्द आया बैल? नहीं महाराज! मैं इतना घूमा, देखा, पर मुझे कोई भी अभीप्सित बैल नहीं मिला।
फिर ऐसा कैसा है वह तुम्हारा बैल, जिसकी जोड़ी वाला तुम्हें बैल चाहिए, राजा ने साश्चर्य पूछा।
राजन्! वह तो आपको मेरे घर पधारने पर ही मालूम होगा। उसका अन्दाज आप यहां पर नहीं लगा सकते। आप कृपा करें और मेरे गरीब के आंगन को पवित्र करें।
राजा के मन में करुणा भी थी और बैल को देखने की उत्सुकता भी। एक दिन अवसर देखकर राजा मम्मण के घर पहुंचा। सेठ मम्मण ने राजा का यथोचित आदर-सत्कार किया और वह उन्हें तलघर के उस स्थान पर ले गया जहां बैल था। मम्मण ने ज्योंही तलघर के कपाटों को खोला तो राजा की आंखें उस रत्नमय बैल के दिव्य प्रकाश से चुंधिया गई। सारा भूमिगृह उसके प्रकाश से जगमगा रहा था। राजा श्रेणिक ने विस्मित होते हुए मम्मण से कहा-महाभाग। इसकी जोड़ी का बैल बनाने जितना धन तो मेरे राजकोष में भी नहीं है। लगता है तुम अतिलोभी व्यक्ति हो। तुम बैलों की जोड़ी बनाने के लिए रात-दिन परिश्रम करते हो, खाने-पीने में कंजूसी रखते हो। आखिर ये बैल क्या काम आएंगे? यह तुम्हारी लोभ-चेतना का परिणाम है।
राजा पुनः अपने महलों में लौट आया और उन्होंने मम्मण के विषय में महारानी को भी जानकारी दी। वह भी अपनी उत्कंठा को नहीं रोक सकी। उसने भी मम्मण के घर जाकर उस रत्नमय बैल को देखा। वह भी उसे देखकर आश्चर्य से भर गई। अन्त में महाराज और महारानी ने यही कहा-गरीबी में छिपी अमीरी को पहचानना कठिन है। जो व्यक्ति अति लोभी होता है वही अमीरी में गरीबी का जीवन जीता है। उसको जगत् की बहुमूल्य वस्तु भी सुख नहीं दे सकती और उसके दुःख को मिटाने वाला भी कोई नहीं है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org