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लक्ष्मीस्वभाव प्रकरण
२२.अवबोध
किसी व्यक्ति ने लक्ष्मी को संबोधित करते हुए कहा-हे लक्ष्मी माता! तू जहां भी रहती है वह तेरी कृपा से लक्ष्मीवान् बन जाता है। जहां तेरी कृपादृष्टि नहीं होती वह सदा दरिद्रता का अनुभव करता है। दरिद्र व्यक्ति भी जब लक्ष्मीवान् से मिलने जाता है तब उसे यही उत्तर मिलता है कि अभी तो महाराजश्री सो रहे हैं, स्नान कर रहे हैं, आराम कर रहे हैं, भोजन कर रहे हैं। उनसे अभी मिलने का समय नहीं है, जाओ, सुबह आना। इस प्रकार निर्धनों के लिए लक्ष्मीपतियों का दरवाजा बन्द रहता है। अधिकारी व्यक्ति भी उनसे मिलने नहीं देते, रोकते रहते हैं। अतः कमलनेत्रे लक्ष्मि! तू इन गरीबों को भी अपने कृपाकटाक्ष से देख, जिससे वे तेरे कृपापात्र बन सकें।
लक्ष्मी कहां रहती है, किसके पास जाती है, यह उसकी अपनी इच्छा है, पर हर व्यक्ति लक्ष्मी की कामना अवश्य करता है। लक्ष्मी धन की देवी है। उसकी उपासना करने का अर्थ है-धन को प्राप्त करना, ऋद्धि-सिद्धि और समृद्धि से युक्त होना। वे व्यक्ति भाग्यशाली हैं जिनके द्वार पर लक्ष्मी दस्तक देती है। वह भी वहीं प्रकट होती है जहां सुसंस्कृत वाणी, गुरुजनों की पूजा, नीति और बल-सभी का सम्मिलन होता है तथा जहां कोई दन्तकलह नहीं होता और सदा पुरुषार्थ की पूजा की जाती है। लक्ष्मी का मिलना और उसका स्थिर रहना-ये दोनों भिन्न बाते हैं। व्यक्ति लक्ष्मी को स्थिर करने का बहुत प्रयत्न करता है, पर विरल व्यक्ति ही उसमें सफल हो पाता है। विदुरनीति में लक्ष्मी के विषय में कहा गया
'श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति, प्रागल्भ्यात् संप्रवर्धते।
दाक्षिण्यात् कुरुते मूलं, संयमात् प्रतिष्ठति।।' लक्ष्मी शुभ कार्य से उत्पन्न होती है, चतुरता से बढ़ती है, निपुणता से जड़ जमाती है और संयम से स्थिर होती है।
जिसमें शुभ कार्य, चतुरता, निपुणता तथा संयम की समन्विति
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