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________________ महावीर की जन्मभूमि 'वैशाली' की महिमा -डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी भगवान् महावीर की जन्मस्थली वैशाली' का इतिहास भगवान् राम से भी प्राचीन है। उनके एक पूर्वज 'विशाल' नामक राजा के द्वारा यह बतायी गयी थी – ऐसा उल्लेख मिलता है । स्वयं राम ने भी वैशाली नगरी को देखा था – ऐसा उल्लेख 'वाल्मीकि रामायण' में है। यह महानगरियों में परिगणित थी। ऐसी सुप्रतिष्ठित वैशाली - महानगरी की महिमा का परिचय वर्तमान युग सुप्रतिष्ठित मनीषी की सारस्वती- लेखनी से प्रसूत इस आलेख में हुआ है। - - सम्पादक महान् है यह नगरी वैशाली, महान् है इसकी परम्परा ! जैसा कि आपने सुना है कि हिन्दू-धर्म के सर्वश्रेष्ठ पुरुष मर्यादापुरुषोत्तम राम ने इसको 'पवित्र' कहा है। महावीर जैनधर्म के प्रवर्तक आचार्य या प्रवर्तक तो नहीं; क्योंकि उनके पहले भी कई प्रवर्तक-आचार्य (तीर्थंकर) 'चुके हैं, महावीर की तो यह जन्मभूमि ही रही है । महात्मा बुद्धदेव के मन में जब वैराग्य का उदय हुआ, तब पहले योग और ज्ञान की शिक्षा उन्होंने इसी नगरी में प्राप्त की । बुद्धत्व - प्राप्ति के बाद भी वे कई बार यहाँ पधारे । यह वही नगरी है, जिसमें हमारी परम्परा के सर्वश्रेष्ठ - पुरुष बराबर आते रहे हैं। उनकी चरण-रज से पवित्र इस भूमि में आने पर आदमी थोड़ा भावुक हो जाता है। यहाँ का एक-एक धूलिकण, जिसमें भगवान् महावीर, महात्मा बुद्ध और विश्वामित्र जैसे महान् पुरुषों के चरण की धूल लगी हुई है, न जाने कहाँ से क्या सन्देश देता है । कुछ वर्ष पहले कुछ पढ़े-लिखे लोग ही जानते थे, कि 'वैशाली' नाम की कोई जगह है; लेकिन आज से सौ-सवा सौ वर्ष पहले लोग इतना भी नहीं जानते थे । आज से लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व सन् 1861 ई. में यहाँ कनिंघम - साहब पधारे थे। कनिंघम उन विदेशी-ज्ञानियों में हैं, उन ज्ञान-पिपासुओं में हैं, जिन्होंने हमारे देश की प्राचीन-सभ्यता के उद्धार में बड़ा काम किया है । इतनी लगन के साथ, इतने साहस के साथ, इतने दर्द के साथ किया, कि शायद ही किसी भारतीय ने वैसा किया हो । भारत के पुरातत्त्व के उद्धार करने में, उनकी प्रेरणा से भारत सरकार ने 'आर्कियोलॉजिकल सर्वे विभाग' का आरम्भ किया। जिस समय कनिंघम यहाँ आये थे, उन्हें यह भी पता नहीं था, कि उनके पहले और भी बहुत से विद्वान् आये थे, और उन्होंने यह अनुमान लगाया था कि यही स्थान 084 Jain Education International प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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