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क्या वैशाली-गणराज्य के पतन के बाद लिच्छवियों का प्रभाव समाप्त हो गया? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक हो सकता है; परन्तु श्री सालेतोर (वही पृष्ठ 508) के अनुसार, “बौद्ध साहित्य में इनका सबसे अधिक उल्लेख हुआ है; क्योंकि इतिहास में एक हजार वर्षों से अधिक समय तक इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।" श्री रे चौधरी के अनुसार, "ये नैनपाल में 7वीं शताब्दी में क्रियाशील रहे। गुप्त-सम्राट् समुद्रगुप्त लिच्छवि-दौहित्र' कहलाने में गौरव का अनुभव करते थे।" ___ 2500 वर्ष पूर्व महावीर-निर्वाण के अनन्तर, नवमल्लों एवं लिच्छवियों ने प्रकाशोत्सव तथा दीपमालिका का आयोजन किया और तभी से शताब्दियों से जैन इस पुनीत पर्व को दीपावली' के रूप में मनाते हैं। 'कल्प-सूत्र' के शब्दों में, “जिस रात भगवान् महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया, सभी प्राणी दु:खों से मुक्त हो गए। काशी-कौशल के अट्ठारह संघीय राजाओं, नव मल्लों तथा नव लिच्छवियों ने चन्द्रोदय (द्वितीया) के दिन प्रकाशोत्सव आयोजित किया; क्योंकि उन्होंने कहा—'ज्ञान की ज्योति बुझ गई है, हम भौतिक संसार को आलोकित करें।” ___2500 वें महावीर-निर्वाणोत्सव के सन्दर्भ में आधुनिक भारत वैशाली से प्रेरणा प्राप्त कर सकता है। अनेक सांस्कृतिक कार्य-कलाप वैशाली पर केन्द्रित हैं। इसी को दृष्टिगत करके राष्ट्र-कवि स्व० श्री रामधारी सिंह दिनकर ने वैशाली के प्रति श्रद्धांजलि निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत की है
वैशाली 'जन' का प्रतिपालक, 'गण' का आदि विधाता। जिसे ढूंढ़ता देश आज, उस प्रजातन्त्र की माता।। रुको एक क्षण, पथिक ! यहाँ मिट्टी को सीस नवाओ । राज-सिद्धियों की समाधि पर, फूल चढ़ाते जाओ ।।
सन्दर्भग्रंथ-सूची 1. मुनि नथमल, 'श्रमण महावीर', पृ0 303 । 2. इदं पच्छिमकं आनन्द ! तथागतस्स बेसालिदस्सनं भविस्यति। 3. उपाध्याय श्री मुनि विद्यानन्द-कृत तीर्थकर वर्धमान' से उद्धृत
यं स भिक्खवे ! भिक्खनं देवा तावनिसा अदिट्ठा, अलोकेथ भिक्खवे ! लिच्छवनी परिसं, अपलोकेथ । भिक्खवे ! लिच्छवी परिसरं ! उपसंहरथ भिक्खवे।
लिच्छवे ! लिच्छवी परिसरं तावनिसा सदसन्ति ।। 4. श्री काशीप्रसाद जायसवाल हिन्दू पोलिटी', पृष्ठ 40 (चतुर्थ संस्करण)। 5. पुरातत्व-निबन्धावली 20 ।। 6. रे चौधुरी, पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ ऐंशियेंट इण्डिया, कलकत्ता विश्वविद्यालय, छठा संस्करण
प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक
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