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हिस्टोरिकल सर्वे ऑफ जैनिज़्म इन नॉर्थ बिहार' (दि जर्नल ऑफ बिहार रिसर्च सोसाइटी, अंक XLV, खंड I-IV, जनवरी - दिसम्बर 1959, पृ. 188 ) में चौबीसवें जैन तीर्थंकर महावीर को वैशाली में एक कुलीन-वंशोत्पन्न बताया है। वहीं उनका प्रारम्भिक जीवन बीता। प्रो. ठाकुर ने प्राचीन वैशाली के तीन जिलों में एक कुण्डग्राम बताया और वहीं के क्षत्रिय ज्ञातृकुल वंशज महावीर थे ।
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इस प्रकार, उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में यह कहा जा सकता है कि वर्तमान वैशाली जिला-स्थित बसाढ़ के समीप का वासुकुण्ड ही भगवान् महावीर का जन्मस्थान है, जो साहित्य और पुरातत्त्व दोनों की कसौटी पर खरा उतर सकता है । भगवान् महावीर के प्रारम्भिक जीवन से जुड़े स्थानों की भौगोलिक स्थिति भी वैशाली के पक्ष का ही समर्थन करती है ।
उपर्युक्त कसौटियों पर यदि 'जमुई' जिला - स्थित 'लछुआड़' और नालन्दा स्थित 'कुण्डलपुर' को कसें, तो कलई स्पष्ट नजर आती है। हाँ, ये दोनों स्थान जैनतीर्थ हो सकते हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता । माली ने बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, मुँगेर (पृ.220) में इण्डियन एटलस शीट का हवाला देते हुए लछुआड़ से तीन मील दक्षिण में स्थित दो मठों का उल्लेख किया है, जो बुद्ध और पुरुषनाथ के मठ के रूप में जाने जाते थे। उन्होंने दो समानान्तर पहाड़ियों के बीच स्थित दो छोटे मन्दिरों की भी चर्चा की है, जहाँ भगवान् महावीर की दो छोटी प्रतिमायें स्थापित थीं । एक प्रतिमा तिथियुक्त बताई गई हैं, जो संवत् 1505 है। माली के अनुसार ये मन्दिर हाल के बने हैं । उन्होंने कहीं भी लछुआड़ को महावीर का जन्मस्थान नहीं बताया है 1
भगवान् महावीर के जीवन से जुड़ी घटनाओं और लछुआड़ की भौगोलिक स्थिति का विवेचन किया जाये, तो लछुआड़ का दूर-दूर तक भगवान् महावीर से कोई सम्बन्ध नहीं जान पड़ता । जैसे—जैनसूत्रों के अनुसार महावीर ने प्रथम चातुर्मास 'अस्थिकग्राम' में बिताया और दूसरा 'राजगृह' में। राजगृह जाने के क्रम में 'श्वेताम्बिका' नगरी से होते हुये गये और गंगा पार कर राजगृह पहुँचे ।
बौद्ध-ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि श्वेताम्बिका 'श्रावस्ती' से 'कपिलवस्तु' जाते समय मार्ग में पड़ती थी। यह प्रदेश 'कोशल' के पूर्वोत्तर और 'विदेह' के पश्चिम में स्थित था, जहाँ से राजगृह जाते समय मध्य में गंगा पार करना पड़ता था, यह इन स्थानों की भौगोलिक स्थिति के विवेचन से जान पड़ता है। लछुआड़ क्षत्रिय - कुण्डपुर जहाँ बताया जाता है, वहाँ उपर्युक्त भौगोलिक स्थिति समीचीन नहीं है। वहाँ से राजगृह जाते समय न तो कोई श्वेताम्बिका नगरी मार्ग में पड़ेगी और न ही गंगा पार करने का अवसर आयेगा ।
अतः, उपर्युक्त प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि वर्तमान 'विदेह' जनपद-स्थित वैशाली ही जैनधर्म के चौबीसवें और अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर की जन्मभूमि है और इसमें किसी प्रकार के सन्देह की कोई गुंजाइश नहीं है ।
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प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2002 वैशालिक - महावीर विशेषांक
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