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________________ उनको निरीश्वरवादी-सांख्य अज्ञान (जड़) स्वभावी मानते हैं? (यह आश्चर्य है)। इसप्रकार हम पाते हैं कि सांख्यदर्शन के प्राचीनतम-उल्लेख जैनग्रंथों में मिलते हैं तथा इसकी मान्यताओं की समुचित-समीक्षा भी वहाँ उपलब्ध है। सन्दर्भग्रन्थ-सूची 1. महाभारत, शान्तिपर्व 350/65 । 2. ऋग्वेद 10-27-161 3. आचार्य अमितगति, धर्मपरीक्षा 18/56 । 4. छहढाला 2/13। 5. द्र. संस्कृत हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे, न्यू भारतीय बुक कार्पोरेशन, नई दिल्ली, पृ. 1093। 6. 'शब्दकल्पद्रुमः' भाग 5, राजा राधाकान्त देव, नाग प्रकाशंक, दिल्ली, पृ० 324। 7. 'अभिधानराजेन्द्रः', पृ० 41 और 46। 8. द्र. षड्दर्शनसमुच्चय, 32-42/32-37। 9. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश', चतुर्थ भाग, क्षु. जिनेन्द्रवर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, पृ. 398-4001 10. 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' भाग-2, जिनेन्द्रवर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, पृ० 403 404। 11. महाभारत, शान्तिपर्व, 304/2। 12. योगवाशिष्ठ, 6/69/18। 13. श्वेताश्वरोपनिषद् 5/2। 14. तैत्तरीय संहिता 2/2/10/2 । 15. मनुस्मृति: 12/911 16. ब्रह्मसूत्र-शांकरभाष्य, 2/1/1। 17. तुलसी, रामचरितमानस, बालकाण्ड 141/4 । 18. भागवत, 3/25/31 । 19. आचार्य शंकर, विवेक-चूड़ामणि 58 । 20. शारीरक मीमांसाभाष्य, अ. 2 । 21. वैदिक पद्मपुराण, 5/19/340। 22. भागवत 4/31/121 23. समयसार गाथा 340 और उसकी तात्पर्यवृत्ति टीका। 24. सन्मतिसूत्र, 3/48। 25. समयसार, जयसेनाचार्य टीका, पृ. 426 । 26. समयसार कलश, 2051 27. वामदेव, भावसंग्रह 174 । प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 00 161 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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