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________________ सम्राद अशोक के शिलालेखों में उपलब्ध महावीर-परम्परा के पोषक तत्व ___-डॉ० शशि प्रभा जैन प्राचीन-अभिलेखों का महत्त्व मात्र ऐतिहासिक-दृष्टि से ही नहीं, वरन् राजनैतिक, भौगोलिक, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक एवं नैतिक-दृष्टियों से भी होता है; क्योंकि उनमें तत्कालीन संस्कृति, समाज, धर्म, प्रशासन एवं नैतिक महत्त्व के प्रसंग आदि प्राय: वर्णित मिलते हैं। कई बार इनमें प्रयुक्त कोई शब्द-विशेष भी इतिहास, संस्कृति, दर्शन एवं धर्म की महत्त्वपूर्ण-गुत्थियों को सुलझाने में बेहद-उपयोगी होता है। साथ ही अभिलेख लिखनेवाले व्यक्ति-विशेष के इतिवृत्त एवं मानसिकता का तो वे स्पष्टरूप से प्रकाशन करते ही हैं। इन सन्दर्भो में यदि अशोक के शिलालेखों एवं स्तम्भ-लेखों का अध्ययन एवं विश्लेषण करें, तो इनमें हमें अशोक के समय के इतिहास एवं प्रशासन का तो ज्ञान होता ही है; पर मुख्यत: ये 'धम्मलिपि' या 'धम्मानुशासन' होने के कारण उसके 'धम्म'-सम्बन्धी विचारों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन करते हैं। अशोक ने इन्हें 'धम्म-लिपि' इसीलिए कहा है; क्योंकि इन सबमें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूप से धम्म-सम्बन्धी विवरण प्राप्त होता है। प्राय: सभी अभिलेखों में उसने 'धम्म' शब्द की पुनरावृत्ति धम्मदान, धम्मघोष, धम्मभेरी, धम्ममंगल, धम्मसंविभाग, धम्मरति आदि रूपों में की है। परन्तु अशोक के अभिलेखों में वर्णित 'धम्म' शब्द तथा धम्म-संबंधी अशोक के विचारों को समझने से पूर्व हमें अशोक की पारिवारिक-पृष्ठभूमि को समझना आवश्यक होगा; क्योंकि यह एक सर्वविदित तथ्य है कि व्यक्ति के विचारों एवं आदर्शों पर उसके पारिवारिक-संस्कारों का बहुत प्रभाव होता है। यह एक ऐतिहासिक-तथ्य है कि अशोक के पितामह चन्द्रगुप्त मौर्य अपने जीवन के अन्तिम दिनों में राज्य त्यागकर जैन-मुनि बन गए थे तथा दक्षिण भारत के मैसूर-प्रान्त में 'श्रवणबेलगोला' में वह अपने गुरु भद्रबाहु के साथ रहकर तपस्या करते थे। अशोक के पिता बिन्दुसार भी जैनधर्म के प्रबल-समर्थक एवं प्रभावक-महापुरुष थे। चीनी यात्री युवाच्वाइ तथा दिव्यावदान' आदि ग्रन्थों के अनुसार अशोक का अनुज जीवन के अन्तिम-दिनों में 'अर्हत्' बन गया था। स्वयं अशोक के सम्बन्ध में भी यह मत है कि वह जैन' था।' विल्सन तथा थामस महोदय ने भी यह सिद्ध करने का प्रयास किया है 00 120 प्राकृतविद्या जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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