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ताके गेह सुभद्रा नार, देहि चन्दना मनहिं विचार । रूपवंत नवजीवन जान, मन में सौत शंक अतिमान ।। रूप हनन को उद्यम कियौ कष्ट चन्दना को तिहि दियौ । अधिक पुराने को बीज, स्वाद रहित मन में सो खीज ।। तक्र सहित मृत भाजन माहिं, सो दीनौ दुरबुद्धिनि ताहि । खाय नहीं रोवै जब खरी, पापिन और उपाय जु करी ।। बन्धन बांधि आखननि धरी, बहुत भांति बहु संकट परी । भुगतै पूरब करम जु धीर, धर्म्मध्यान नहि तजै शरीर । । तिहिं अवसर वाही पुर पाय, चरजाहित आये जिनराय । देख चन्दना प्रभु को सबै, बन्धन टूट गये वपु सबै ।। तनके सकल शोक नश गये, परम हुलास चित्तमें भये । सन्मति प्रभु पद प्रनर्मै आय, हस्त जोर भुवि शीस लगाय ।। पडगाहे विधिपूर्वक सोइ, भक्तिभाव अति उरमे ओइ । शील महत्त्व सबै यह जान पाये प्रभु को कृपानिधान ।। सो वह तक्र कोदवन वोद, तंदुल खीर भयौ अनुमोद | माटी पात्र हेम मय सोय, धरम तनै फल कहा न होय ।। वही अन्त प्रासु विधि सार, दीनौ प्रभुको परम अहार । भक्तिभाव ताके उर भयौ, नवप्रकार विधि पुण्य जु लयौ ।। पंचाश्चर्य किये सुर छाय, रतनादिक वरषा अधिकाय । ले अहार प्रभु वनको गये, ध्यानारूढ़ आतमा नये । । वृषभसेन प्रनर्मै पद आय, तुम हो सती शिरोमणि माय । अरु बहु अस्तुति कीनी सबै, मो अपराध क्षमा कर अ 11 होइ दान सों सुख अधिकाय, संकट विकट सबै मिट जाय । क्षणभंगुर जाने संसार, प्रभु पद लहौ महाव्रत धार ।।
लहो चन्दना दान फल, जग में जस अधिकाय । शील सहित दीक्षा लई, भई अर्जिका जाय ।।
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- ( दशम अधिकार, पद्य 354-374) अनुवाद मुनिराज वर्द्धमान वन में वास करते हुये विहार कर रहे थे, उसी प्रसंग की एक और कथा हे सज्जनो ! सुनो। विशालपुर (वैशाली) नाम का एक प्रसिद्ध और समृद्ध देश (गणतंत्र) था, जिस पर गुण - सम्पन्न राजा चेटक राज्य करता था।
इन राजा चेटक के सात पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं, जिनमें सर्वप्रथम पुत्री का नाम प्रियकारिणी त्रिशला था. वर्द्धमान महावीर की माँ बनी। दूसरी पुत्री का नाम ज्येष्ठा था,
प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2001 (संयुक्तांक) महावीर - चन्दना - विशेषांक 0 87
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