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________________ आवरण पृष्ठ के बारे में आवरण पृष्ठ पर मुद्रित चित्र जयपुर राजघराने के कोषागार में संकलित एक प्राचीन चित्र की छाया-अनुकृति है। यह लगभग 250 वर्ष प्राचीन है। इसमें भगवान महावीर के गर्भ-कल्याणक एवं जन्म-कल्याणक का दृश्य चित्रित है। गर्भकल्याणक की सूचना ऊपर सोलह स्वप्नों के चित्र द्वारा दी गयी है। माँ प्रियकारिणी त्रिशला वैशाली-कुण्डग्राम के 'नन्द्यावर्त' राजमहल के अपने शयनकक्ष में लेटी हुई आषाढ शुक्ल षष्ठी के दिन प्रात:काल (रात्रि के अंतिम प्रहर में) परम मांगलिक सोलह स्वप्न देखती है। इस विषय में आचार्यों ने लिखा है “माता यस्य प्रभाते करिपति-वृषभौ सिंहपोतं च लक्ष्मी, मालायुग्मं शशांक रवि-झषयुगले पूर्णकुम्भौ तटाकम् । पायोधिं सिंहपीठं सुरगणनिभतं व्योमयानं मनोज्ञम्, चाद्राक्षीन्नागवासं मणिगणशिखिनौ तं जिनं नौमि भक्त्या ।।" अर्थ :- जिन तीर्थंकर वर्धमान महावीर की माता ने प्रभात-समय में ये 16 स्वप्न देखे हैं, उन्हें मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ : 1. हाथी, 2. बैल, 3. सिंह, 4. लक्ष्मी, 5. दो मालायें, 6. चन्द्र, 7. सूर्य, 8. दो मछलियाँ, 9. जलपूर्ण दो कुम्भ, 10. तालाब, 11. समुद्र, 12. सिंहासन, 13. देव-विमान, 14. नाग-भवन, 15. रत्नराशि एवं 16. निर्धूम अग्नि। भगवान् के गर्भकल्याणक के विषय में निम्नानुसार उल्लेख मिलता है “आषाढ-सुसित-षष्ठ्यां हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते शशिनि। आयात: स्वर्गसुखं भुक्त्वा पुष्पोत्तराधीश: ।।" अर्थ :- 'आषाढ' मास के शुक्लपक्ष' की 'षष्ठी' तिथि को 'हस्त' नक्षत्र के मध्य में चन्द्रमा स्थित होने पर 'पुष्पोत्तर' नामक विमान के इन्द्र का जीव अपनी स्वर्ग-आयु को भोगकर माँ त्रिशला के गर्भ में अवतरित हुआ। __ आधुनिक गणना के अनुसार यह तिथि शुक्रवार, 17 जून 599 ईसापूर्व बैठती है। नौ माह, सात दिन और बारह घंटे का गर्भवास पूर्ण करके चैत्र शुक्ल त्रयोदशी सोमवार, 27 मार्च 598 ईसापूर्व को माँ त्रिशला की कुक्षि से स्वर्णिम-वर्ण की आभावाले भरतक्षेत्र के वर्तमानकाल के चरम तीर्थंकर का बालक वर्द्धमान के रूप में जन्म हुआ। उनके गर्भवास के समय छप्पन कुमारी देवियाँ माता की सेवा करती रहीं। जन्म होने की सूचना पाते ही सौधर्मेन्द्र सपरिकर वैशाली नगरी में आया और उसने ऐरावत हाथी पर अत्यन्त बहुमानपूर्वक ले जाकर नवजात शिशु का सुदर्शनमेरु पर्वत की पाण्डुकशिला पर एक हजार आठ कलशों से भव्य जन्माभिषेक किया। इसी का संक्षिप्त सांकेतिक वर्णन इस आवरण-चित्र में अंकित है। –सम्पादक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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