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________________ जीवन्तता का परिचय दिया। अपनी साधना से संकीर्णता की बेड़ियों में अपने को बंधने नहीं दिया। मृत्यु के नागपाश में अपने को नहीं फंसने दिया। सब कुछ रौंदकर, सब कुछ छोड़कर वह विजय-यात्रा के लिए निकली। ___ आर्या चन्दना इस युग की सुवर्णाशा है; उसके ज्योति-पुंज में न जाने कितने सूर्य, राशि, नक्षत्र, अनिन्द्य लावण्यलोक अन्तर्हित हैं। जब तक महावीर का युग है, तब तक चन्दना की भी यशोगाथा जीवित है। वह समस्त संस्कृति की गति है, धर्म व साहित्य के अमृत-स्वरों की जाह्नवी है। उनका श्रद्धास्पद-चरित श्राविका और आर्यिका दोनों ही रूपों में वरेण्य है। भगवान महावीर के 2600वें जन्मोत्सव के आलोक में गणिनी आर्यिका चन्दना को विस्मृत नहीं किया जा सकता। यह वर्ष उनके भी यश की शाखायें प्रशाखायें चतुर्दिक् प्रसारित कर जैनधर्म में नारी-जाति को सहज प्रदत्त समानता और सम्मान के पुण्यतीर्थ और कीर्तिस्तम्भ स्थापित करेगा। तीर्थंकर महावीर और महात्मा बुद्ध वास्तव में तीर्थकर महावीर और महात्मा बुद्ध समदेश, समकाल एवं समसंस्कृति के दो क्षत्रिय राजकुमार हुए, जिन्होंने आत्मधर्म और लोकधर्म का 2500वर्ष पूर्व प्रसार किया। इन दोनों महान् आत्माओं के जीवन, सिद्धान्त, धर्म आदि का अध्ययन करने में निम्नलिखित तुलनात्मक तथ्यतालिका बहुत उपयोगी सिद्ध होगी। क्र० विषय आत्मधर्म-प्रकाशक महावीर लोकधर्म-प्रचारक बुद्ध नाम वर्द्धमान बुद्ध पिता सिद्धार्थ शुद्धोधन त्रिशला महामाया कश्यप कश्यप ग्राम कुण्डग्राम (वैशाली) कपिलवस्तु (लुम्बिनी) वंश ज्ञातृ शाक्य जाति क्षत्रिय क्षत्रिय जन्म ई०पू० 598 ई०पू० 582 अर्हन्त आर्हत ज्ञानप्राप्ति-स्थान ऋजुकूलातट गया निर्वाण ई०पू० 527 ई०पू० 502 12. निर्वाणस्थान पावापुरी कुशीनगर 13. आयुष्य 72 वर्ष 80 वर्ष | 14. व्रत पंच-महाव्रत पंचशील | 15. सिद्धान्त स्याद्वाद क्षणिकवाद ** माता __गोत्र धर्म प्राकृतविद्या-जनवरी-जन'2001 (संयुक्तांक) +महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003215
Book TitlePrakrit Vidya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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