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देखे. जिनका परिणाम राजा सिद्धार्थ और राजज्योतिष ने गणना करके भावी तीर्थंकर बालक का गर्भावतरण घोषित किया
“आषाढ-सुसित-षष्ठ्या हस्तोत्तर-मध्यमाश्रिते शशिनि।
आयात: स्वर्गसुखं भुक्त्वा पुष्पोत्तराधीश: ।।" प्रभु का गर्भावतरण होते ही स्वर्ग से छप्पन कुमारी-देवियाँ आकर माँ त्रिशला की सेवा का दायित्व संभालने लगीं। क्रमश: गर्भकाल पूर्ण होने पर चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन प्रात:काल वैशाली का सौभाग्य अवतरित हुआ। प्रभु के जन्म की सूचना पाते ही तीनों लोगों में आनंद छा गया और--
“उन्मीलितावधिदशा सहसा विदित्वा, तज्जन्मभक्ति भरत: प्रणतोत्तमाङ्गा:व । घण्टा-निनाद-समवेतनिकायमुख्या, दिष्टया ययुस्तदिति 'कुण्डपुरं' सुरेन्द्रा ।।"
___ (महाकवि असग रचित 'वर्धमान-चरित्र') अवधिज्ञान से कुण्डपुर में तीर्थकर का जन्म हुआ जानकर सुरेन्द्र तीर्थकर का जन्म-कल्याणक मनाने के लिए उस कुण्डपुर में आये। उस समय भक्ति के भार से उनके मस्तक नत थे। प्रभु का जन्म हुआ है -- इस बात की सूचना कल्पवासी देवों को वहाँ उस समय घंटे के बजने से हो जाती है। व्यन्तर देवों को भेरी के वजनों से, ज्योतिषियों को सिंहनाद के होने से, भवनवासियों को शंख की मधुर ध्वनि होने से प्रभु के जन्म होने का समाचार विदित हो जाता है। सबके सब सुरेन्द्र अपने परिवार-सहित अपने-अपने भाग्य की सराहना करते हुए ठाठ-बाट से प्रभु का जन्म-कल्याणक मनाने वैशाली के कुण्डपुर को तुरन्त प्रस्थान करते हैं।
स्वयं सौधर्मेन्द्र भी भावी तीर्थकर का जन्मकल्याणक मनाने आया और सुमेरु पर्वत की पाण्डुक शिला पर सद्योजात बालकपन एक हजार आठ कलशों से भव्य जन्माभिषेक कर उसने भावी तीर्थंकर बालक की स्तुति की
"देव ! त्वय्यद्य जाते त्रिभुवनमखिलं चाद्यजातं सनाथम् । जातो मूर्तोद्य धर्म: कुमतबहुतमो ध्वस्तभद्यैव जातम् ।। स्वर्मोक्षद्वार कपाटं स्फुटमिह निवृतं चाद्य पुण्याहमाशी। र्जातं लोकाग्रचक्षुर्जय जय भगवज्जीव वर्धस्व नंद।।"
-- (पं0 नेमिचंद्र प्रतिष्ठा तिलक, 9/7) अर्थ :- हे देव ! तीर्थकर वर्द्धमान आज आपके जन्म लेने से सम्पूर्ण त्रैलोक्य आज सनाथ हो गया है, आज धर्म मूर्तरूप में साक्षात्' उपस्थित हो गया है, कु-मत या मिथ्यात्वरूपी तम आज नष्ट हो गया है, आज स्वर्ग और मोक्ष के द्वार, जो बन्द थे, खुल गये हैं; मैं पवित्र हो गया हूँ। हे लोकाग्रचक्षु ! हे भगवन् ! आप जीवित रहो -- बढ़ते रहो, आनन्दित होओ।
.00 10 प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक
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