________________
स्मृति के झरोखे से (भगवान् महावीर के 2600वें जन्म-कल्याणक वर्ष के अवसर पर विशेष)
–त्रिशला जैन जब जागृत होती है स्मृति मन के किसी कोने में, तो लगता है जैसे जन-जन का मानस बन साथ-साथ चल रहे तुम।
जिंदगी ने कितने रूप जिये होंगे अनगिनत. पर स्वरूप वस्तु का केवल एक ही था,
धनिष्ठ समर्पित थे तुम। रह गये अवशेष जो विरासत में संस्कृति के, उस मिट्टी को चढ़ा शीश साँसें अपनी छोड़-छोड़, प्राण फूंकते रहे तुम।
धरती पर ले जनम पुरुषार्थ भाग्य के मनुज, स्वप्न को यथार्थ कर पहुँच गये शिखर पर,
क्योंकि थे नि:शोक तुम। गगन के विस्तार पर बांधकर श्रद्धा-कलश, अमूर्त को मूर्त कर दे गये पगडंडी सरल वीतरागी भाव को तुम।।
U0 112 प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) +महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org