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________________ Jain Education International चालीसा बंदी पाठ करें शत बारा । बंदी पाश दूर हो सारा ।। यदि कोई बंदी सौ बार इस चालीसा का पाठ करे, तो वह सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है । करहु कृपा भवमुक्ति भवानी । मो कहं दास सदा निज जानी ।। हे माँ भवानी ! मुझे अपना अनन्य सेवक समझकर कृपा कीजिए और मुझे भवसागर से मुक्ति दिलाइए । "दोहा " माता सूरज कान्ति तव, अंधकार मम रूप । डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव - कूप । । मां ! आपकी कांति सूर्य के समान है और मेरा रूप अंधकार की भाँति। मुझे संसाररूपी कूप में डूबने से बचा लें । बल बुधि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु । अधम रामसागरहिं तुम आश्रय देउ पुनातु ।। हे मां ! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दें। राम सागर जैसे अधम को आप ही आश्रय दे सकती हैं। रक्षा करो ! || चालीसा समाप्त । । 63 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003213
Book TitleShardanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnima A Desai
PublisherShikshayatan Cultural Center, Newyork USA
Publication Year2007
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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