________________
श्री सरस्वती चालीसा
||दोहा।।
जनक जननि पद कमलरज, निज मस्तक पर धारि ।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुधि बल दे दातारि ।। माता - पिता के चरणों की धूलि माथे से लगा मैं सरस्वती की वंदना करता हूँ। हे दातारि ! मुझे बल और बुद्धि दो।
||दोहा।।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु।। हे माँ सरस्वती ! आपकी अनंत महिमा सम्पूर्ण जगत में व्याप्त है।
हे माँ ! अब आप ही हमारे पापों को दूर करो।
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी।। सम्पूर्ण वैभव, बुद्धि और बल की राशि ! मृत्यु और विनाश को न प्राप्त
होने वाली सर्वज्ञा ! आपकी जय हो।
जय जय कर वीणाकर धारी ।
करती सदा सुहंस सवारी ।। हाथ में वीणा को धार कर आप सदैव ही शुभ्र हंस पर
सवारी करने वाली हो। हे माँ! आपकी जय हो।
55
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org