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________________ आचार्य यक्षदेवमूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ८२५-८४० ७-देश ६२ ०० पट्टन ४८००० मण्डप २४००० सन्निवेश ३६००० और प्राम ९६००००००० (एक प्राम में कम से कम दशहजार घर होना लिखा है।) ८-गायों के गोकल ३ करोड़। तीन करोड़ हल जमीन खड़ने के । ९-सेठ तीन करोड़ कोटवाल चौरासी लक्ष, वैद्य तीन करोड़, रसोइया ३६० मैला १४००० राजधानो ३६००० वाजा तीन लाख । १०-सोने के आग्रह २०००० रूपा को २४००० रत्नों की १६००० । ५१-चक्रवर्ति का लस्कर ४८ कोश में स्थापन होता था। इत्यादि चक्रवर्ति की ऋद्धि ग्रन्थान्तर कही है हां वर्तमान अल्पऋद्धि वाले लोग इन ऋद्धि को सुनकर श यद् विश्वास नहीं करते होगें पर जब मनुष्य के पुन्योदय होता है तब ऐसी ऋद्धि प्राप्त होना कोई असंभव सी बात नहीं है यह तो अखिल भारत की ऋद्धि बतलाई है पर आज देश विदेशों में एक-एक प्रान्त एवं राजधानी में भी देखी जाय तो बहुत सी ऋद्धि पाई जाति है तब असंख्य काल पूर्व उपरोक्त ऋद्धि हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कई लोग चक्रवर्ति के हस्ती अश्व रथ पैदल वगैरह की संख्या सुन कर संदह करते है पर भरतक्षेत्र के छखगहों का क्षेत्र फल का हिसाब लगा कर देखा जाय तो स्वयं समाधान हो सकता है। खैर इन ऋद्धि को भी चक्रवर्तियों ने असार समझी थी। इस प्रकार की ऋद्धि एवं सुख थे पर आत्मिक सुखों के सामने उन पद्गलिक सुखों की कुछ भी कीमत नहीं थी अतः चक्रवतियों ने उन भौतिक सुखों पर लात मार कर दीक्षा लेली थी तब ही जाकर वे संसार भ्रमन एवं जन्म मरण के दुःखों से छुटकारा पाकर मोक्ष के अक्षय सुखों को प्राप्त हुए थे और जिन चक्रवर्तियों ने आत्मा की ओर लक्ष नहीं दिया और पुद्गलिक सुखों को ही सुख मान लिया वे सातवी नरक के महमान बनगये कहा है कि 'खीणमात सुखा बहुकाल दुःखा' अर्थात् उस नरक के पल्योपम और सागरपम के आयुष्य के सामने मनुष्य की आयुः क्षण मात्र है अतः क्षणमात्र सुखों के लिये दीर्घ काल के दुःख सहन करना पड़ता है । अब इस पर आप लोग स्वयं विचार कर सकते हो कि प्राप्त हुई शुभ सामग्री का उपयोग किस प्रकार करना चाहिये इत्यादि सूरिजी ने बड़े हो वैराग्योत्पादक ब्याख्यान दिया। यों तो सूरिजी की देशना सुन अनेक भाबुकों का दिल संसार से हट गया था। परन्तु शाह पात्ता ने तो निश्चय ही कर लिया कि मिली हुई उत्तम सामग्री का सदुपयोग करना ही मेरे लिये कल्याण का कारण हो सकता है शाहपात्ता ने उसी व्याख्यान में खड़ा हो कर कहा पूज्यवर । आपने व्याख्यान देकर मोह निद्रा में सोये हुए हम लोगों को जागृत किया है दूसरों की मैं नहीं कह सकता हूँ पर मैं तो आपश्री जी के चरण कमलों में दीक्षा लेने को तैयार हूँ। सूरिजी ने कहा 'जहां सुखम' पर शुभ कार्य में विलम्ब नहीं करना कारण 'श्रेयसैबहुविघ्नानि' तथाऽस्तु बाद भगवान महावीर और सूरिजी की जयध्यनि के साथ सभा विसउर्जन हुई । पर आज तो करणावती नगरी में जहां देखो वहां दीक्षा की ही बातें हो रही है जैसे कोई वरराज की बरात के लिये तयारियें होती हों इसी प्रकार शाह पात्ता के साथ शिवरमणी के लिये तैयारियें होने लग गयी । शाह पात्ता की उस समय ५० वर्ष की उमर थी और पांच पांडवों के सदृश पात्ता के पांच पुत्र थे पात्ता के बारह बन्धु और उनके पुत्रादि बहुत सा परिवार भी था सबको कह दिया कि संसार असार है एक दिन मरना अवश्य है परन्तु दीक्षा लेकर मरना समझदारों के लिये कल्याण का कारण है ? पात्ता के एक सरिजी के व्याख्यान का प्रभाव और पाता ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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