SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ४००-४२४ वर्ष । [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास वहाँ की यात्रा कर क्रमशः मथुरा आकर चतुर्मास किया इन तीन वर्षों के भ्रमन में सूरिजी ने हजारों अजैनों को जैन बनाये और जैनों को धर्म में स्थिर किये । जिस समय सुरिजी मथुरा में विराजमान थे उस समय मथुरा में बोद्धों का भी खूब जोर जमा हुश्रा था पर सूरिजी और आपके विद्वान् शिष्यों के सामने बोद्धों की कुछभी दाल नही गल सकती थी सूरिजीका व्याख्यान हमेशा त्याग, वैराग्य एवं तत्त्वज्ञान पर होता था जिसका प्रभाव जनता पर खूब ही जोरदार होता था कइ भावुकों ने जैन मन्दिर बनाये थे उनकी प्रतिष्ठा सूरिजी के कर कमलों से हुई तथा कइ महानुभावों ने जैन दीक्षा भी ली वहाँ से विहार कर सूरिजी महाराज क्रमशः मरुधर में पधार रहे थे उस समय चंदेरी नगरी पे मरकी का रोगा ने बड़ा भारी उपद्रव मचा रखा था श्रीसंघ ने सुना कि आचार्य रत्नप्रभसूरि महा प्रभाविक है उनके आने से रोग की शान्ति हो जायगी अतः संघ अग्रेसर लोग मिलकर विराट नगर में श्राये और सूरिजी से अपनी दुख गाथा कह सुनाई । परोपकारी महात्माओं का तो जन्म ही जनता का कल्याण के लिये होता है सूरजी बिहार कर चंदेरी पधारे और वहाँ वृहद शान्ति स्नात्र पढ़ाई कि उपद्रव शान्त हो गया जिससे जैनधर्म की प्रभावना हुई जैन जैनेत्तर सूरिजी का उपकार माना। कई दिनों की स्थिति के वाद, बुंदेलखंड एवं आवंती प्रदेश में बिहार करते हुए आपने दशपुर में चतुर्मास किया वहाँ भी आप श्री के विराजने से धर्म की खूब ही प्रभावना हुई वहाँ से चित्रकोट नगरी देवपट्टन, आधाट, विराट वगैरह छोटे बड़े प्रामों में भ्रमन करते हुए सूरिजी ने मरुधर में पदार्पण किया। आप षष्टम रत्नप्रभसूरि थे पर जनता को आद्य रत्नप्रभसूरि की स्मति हो रही थी । आचार्य श्री ने शाकम्भरी, हंसावली, पद्यावली, कुर्चपुरा, मुग्धपुर भवानीपुर नागपुर, आशिकादुर्ग, हर्षपुर, मेदनीपुर, क्षत्रीपुर, वगैरह ग्राम नगरों में बिहार करके जब शंखपुर पधारे तो वहाँ के श्री संघ में खूब उत्साह फैल गया कारण सूरिजी की यह जन्म भूमि थी जैसे सूरिजी को अपनी जन्म भूमिका का गौरव था वैसे ही नगर निवासियों को भी गौरव था कि हमारे नगर में ऐसे अमूल्य रत्नोत्पन्न हुए कि संसार भर में शंखपुर को पावन एवं प्रसिद्ध कर दिया श्री संघ ने सूरिजी के नगर प्रवेश क महोत्सव बड़े ही समारोह से किया सूरिजी ने मन्दिरों के दर्शन कर धर्म दर्शना दी। जिसका जैन जैनेत्तर जनता पर छाच्छा प्रभाव पड़ा । तत्पश्चात् श्री संघ ने सूरिजी से चतुर्मास की प्रार्थना की कि पूज्यवर ! आप आचार्य होने के बाद अब ही पधारे है कमसे कम एक चतुर्मास तो अवश्य करना चाहिये । अतः सरिजी ने श्रीसंघ की विनती स्वीकार कर वह चतुर्मास जन्म भूमि में कर दिया आपके विराजने से धर्म का अच्छा उद्योत हुआ कई ब्राह्मण वगैरह जो जैनधर्म के विषय में अज्ञात रहकर भ्रम में गोथे खारहे थे सूरिजी ने उनका समाधान कर जैन धर्म के अनुरागी बनाये कइ मांस भक्षियों का उद्धार कर उनकों जैनधर्मोपासक बनाये और भी कई प्रकार से धर्म की प्रभावना हुइ चतुर्मास समाप्त होते ही पाच पुरूष और ७ बहिनों ने सूरिजी के नरणों में दीक्षाली तत्वपश्चात् सूरिजी विहारकर छोटे बडे ग्रामों में भ्रमण करते हुए भाडव्यपुर होते हुए उपकेशपुर की ओर पधार रहे थे यह शुभ समाचार सुना तो श्रीसंघ के उत्साह का पर नहीं रहा श्रीसंघ ने नगर प्रवेश का बड़ा ही आलीशान महोत्सव किया और सूरिजी चतुर्विध श्रीसंघ के साथ भगवान् महावीर एवं आचार्यरत्नप्रभसूरिजी की यात्रा की और श्रीसंघ को थोडी पर साणर्भेत धर्म देशना सुनाई आज उपकेश पुर के घर-घरमें आनन्द मंगल छारहा है क्यो नही सक्षात्कल्प वृक्षका शुभागमन हुआ इससे बढ़कर आनन्द क्या हो सकता है। देवी सच्चायिका भी समय समय सूरिजी को वन्दन करने को आया करती थी और यह ८२४ .. [आचार्य श्री का विहार की विशालता For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy