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भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ]
[मुख्य २.घटनाओं का समय
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३५७ ३७० ३७५ ३७५ ४०० ४१२
४१४
४२४ ४२६
४३४ ४४० ४५० ४७७ ४८० ४६२
५००
वर्ष प्राचार्य कक्कसूरि का पद त्याग और देवगुप्तसूरि गच्छ नायक , आचार्य देवगुप्रसूरि का पद त्याग और सिद्धसूरि गच्छ नायक ,, आचार्य देवानन्दसूरि
वल्लभी नगरी का भंग-बलाह गौत्र से रांका शाखा जिसमें:कांकसी का कारण आचार्य सिद्धसूरि का पद त्याग और रनप्रभसूरि गच्छ नायक चैत्यवासियों की प्रबल्य सता का समय प्राचार्य मल्लवादी ने बोद्धों का पराजय कर शत्रुञ्जय पर अधिकार प्राचार्य रत्नप्रभसूरि का पद त्याग और यक्षदेवसूरि गच्छ नायक बह्मद्वीपी शाखा का प्रादुर्भाव श्राचाय विक्रमसूरि
प्राचार्य नरसिंहमूरि , आचार्य सतुद्रसूरि , युगप्रधानाचार्य नागअर्जुनसूरि , प्राचार्य यसदेवसूरि का पद त्याग कक्कसूरि गच्छ नायक पद पर
चन्द्रावती नगरी में संघ सभा , आचार्य धनेश्वरसूरि ने शिलादित्य के राज में शत्रुञ्जय महात्म्य ग्रन्थ बनाया , आचार्य कक्कसूरि का पद त्याग और देवगुप्रसूरि गच्छ नायक
आर्य देवद्धिगणि ने आचार्य देवगुप्तसूरि से दो पूर्व के ज्ञान पढ़े शिवशर्माचार्य ने कर्मप्रकृति नामक ग्रन्थ लिखा
आचार्य यशोभद्रसूरि ने खम्मात के मन्दिर पर ध्वजारोहण कराई भैसाशाह ने अटरू ग्राम में मन्दिर बनाया जिसका शिलालेख भैसाशाह और रोडा बनजादा ने भैसरोडा ग्राम आबाद किया आर्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण जी ने वल्लभी में पागम पुस्तकारूढ़ किया बादीगधर्व वेताल शान्तिसरि वल्लभी में विद्यमान थे युगप्रधानाचार्य भूतादिन कालकाचार्य वल्लभी में थे उनका मत में १३ वर्ष का फरक
अानन्दपुर के राजा धूरसेन के शोक निवाार्थ कल्पसूत्र सभा में वांचना शुरू , आचार्य देवगुप्तसूरि का पद त्याग और सिद्धसूरि गच्छ नायक
कालकाचार्य का स्वर्गवास आचार्य मानदेवसूरि मतान्तर .....समय सत्यमित्र युगप्रधानाचार्य के साथ पूर्वज्ञान विच्छेद प्राचार्य रत्नप्रभसूरि यक्षदेवसूरि दो नाम भंडार में स्थापन किये प्राचार्य सिद्धसूरि का पद त्याग और कक्कसूरि गच्छ नायक युगप्रधानाचार्य हरिल का स्वर्गवास आचार्य विबुधप्रभसूरि आचार्य जयानन्दसूरि भीनमाल में चावड़ा वंशी विघ्रराजा का राज था
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