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भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ]
[ मुख्य २ घटनाओं का समय
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वर्ष राजा विक्रमादित्य ने अपना संवत् चलाया , आचार्य सिद्धसेनदिवाकर ने राजा विक्रम को जैन धर्मोपासक बनाया , आचार्य सिद्धसेन ने आवंति पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रकट की ( कल्याण मन्दिर)
विक्रम सम्बत प्रारम्भ , राजा विक्रमादित्य ने श्री शत्रुञ्जयादि तीर्थों का विराट संघ निकाला
राजा विक्रम लिंबामंत्री द्वारा वायट नगर के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया बनसेन सूरि का जन्म युगप्रधानाचार्य धर्मसूरि आचार्य जीवदेवसूरि की विद्यमानता आपश्री महान् चमत्कारी विद्यावली बनसेन सूरि की दीक्षा आय्य बनसूरि का जन्म राजा विक्रम ने ऊकार नगर में जैन मन्दिर बनाया आचार्य सिद्धसेन दिवाकर का प्रतिष्ठित नगर में स्वर्गवास थाचार्य सिद्धसूरि का पद त्याग रत्नप्रभसूरि गच्छ नायक तीर्थ श्री शत्रुञ्जय का उच्छेद अर्थात् तीर्थ बोद्धों के हाथ ही जाना
आचार्य विमलसरि ने पद्मचरित्र नामक ग्रन्थ बनाया , युगप्रधानाचार्य भद्रगुप्तसूरि का स्वर्गारोहण
आचार्य रक्षितसूरि ने चार अनुयोग पृथक २ किये आर्य रक्षितसूरि का स्वर्गवास मत्तान्तर ६३ वर्ष आचार्य श्री गुप्त का शिष्य.. त्रिरासी मत्त निन्द्रय आचार्य बघ्रसूरि को सूरिपद प्राग्वटवंशीय जावड़ ने श्री शत्रुञ्जय का उद्धार कराया तक्षशील में जगमल राजा का राज जिसके वहां से जावड़ मूर्ति लाया गोष्टिक मालिक नामका सातवां निन्हव । आचार्य सिंहगिरि धनगिरि का समय तथा समति सूरि ने ५०० तापसों को प्रतिबोध भारत में जनसंहार द्वादशवर्षीय दुष्काल अार्य बत्रसूरि का स्वर्गवास आर्य प्राचार्य रत्नप्रभसूरि का पद त्याग और यक्षदेवसूरि गच्छ नायक आचार्य देवानन्दसूरि ने कच्छ-भद्रेश्वर के मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई सत्यपुरी में अष्टदश सुवर्ण भार की प्रतिमा की प्रतिष्ठा जञ्जगदेव सूरि ने की उपाध्याय देवचन्द्र जो कोरंटपुर के महावीर मन्दिर में ठहरते थे कोरंटपुर के मंत्री नहाड के बनाये मन्दिर की प्रतिष्ठा युगप्रधानाचार्य श्रार्य रक्षित सूरि का स्वर्गवास मतान्तर ६३-७४ वर्ष
कृष्णर्षि आचार्य के शिष्य शिवभूति द्वारा दिगम्बर मत की उत्पति , आर्य बन्नसेनसूरि के समय द्वादशवर्षीय दुष्काल
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