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________________ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास www.Anum जैन जननी जन्म भूमि का त्याग कर लाट गुर्जर की ओर चले गये थे तथा उसके बाद भाष्यचूर्णियों का निर्माण समय में भी मरुधर में जैनधर्म होने के पुष्कल प्रमाण मिल सकते हैं । उपरोक्त प्रमाणों से यह तो स्पष्ट निर्णय हो चुका है कि सम्राट सम्प्रति के समय और आप के बाद में भी किसी समय मारवाड़ जैन धर्म से वञ्चित नहीं था तब आचार्य रत्नप्रभसूरि का मरुधर में पधारना भी सम्प्रति के बाद में तो होना बिलकुल सिद्ध नहीं होता है कारण सम्प्रति के बाद मरुधर ऐसा नहीं था कि मुनियों के विहार में सैकड़ों कठनायाँ उपस्थित हों जिससे जैन श्रमणों को दो-दो चार-चार मास शुद्ध आहार पानी के अभाव भूखा प्यासा रहना पड़े। इससे यह निश्चय हो जाता है कि प्राचार्य रत्नप्रभसूरि मरुधर में सम्राट सम्प्रति के पूर्व ही पधारे थे तब यह देखना होगा कि सम्पति के पूर्व पार्श्वनाथ की परम्परा में रनप्रभसूरि कब हुए थे ? वस ! पता लग जायगा कि पार्श्वनाथ के छट्टे पट्टधर आचार्य रत्नप्रभसूरि वीरात् ५२ वर्षे सूरिषद प्राप्त हो वीरात् ७० बर्षे उपकेशनगर में पधार कर वहां के राजा प्रजादि लाखों बीर क्षत्रियों को प्रतिबोध कर जैन धर्म में दक्षित किये और उन नूतन जैनों का संगठन मजबूत रखने को तथा भविष्य में शेष रहे मांस भक्षी क्षत्रियों के साथ पुनः मिल न जाय इस गर्ज से उन्होंने महाजन संघ नाम की संस्था स्थापना कर दी जो अद्यावधि विद्यमान है। पाठकों ! अब तो ओसवाल जाति की मूलोत्पत्ति के लिये सूर्य जैसा प्रकाश हो गया कि निःशंकतय ओसवाल जाति की मूलोत्पत्ति वीरात् ७० वर्ष में ही हुई थी यदि इस प्रकार सूर्य के प्रकाश में भी किसी कौशिक को नहीं दीखे तो सिवाय उनके अभिनिवेश का प्रबल उदय के और क्या कहा जा सकता है। प्राचीन अर्वाचीन ग्रामों की नामावली यह बात अनुभव सिद्ध है कि बड़े • नगरों की अपेक्षा ग्रामों में रहने वालों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है यही कारण है कि लोग नगरों की बजाय ग्रामों में रहना पसन्द करते हैं। जब हम मन्दिर मूर्तियों के शिलालेखों को देखते हैं तो बहुत से ग्रामों के लोगों ने मन्दिरों को प्रतिष्ठाएँ करवाई थी पर वर्तमान में उन ग्रामों से बहुत से ग्रामों का पता नहीं लगता है इसका मुख्य कारण एक तो विधर्मियों के आक्रमण ने बहुत ग्रामों को नष्ट भ्रट कर दिये जहाँ हजारों घर महाजनों के थे वे ग्राम उजाड़ पड़े हैं जिसमें मन्दिर था जिसको तो हम जान सकते हैं कि यहाँ पहले ग्राम था जैसे राणकपुर मुच्छालामहावोर सोमेश्वर बामणवाडादि पर बिना मन्दिर के ग्रामों को तो हम पहचान भी नहीं सकते हैं दूसरा कई ग्रामों के नाम भी रहो बदल एवं अपभ्रश भी हो गये हैं कुछ नमूने के तौर पर यहाँ लिख दिये जाते हैं। प्राचीन नाम अर्वाचीन नाम प्राचीन नाम अर्वाचीन नाम प्राचीन नाम अर्वाचीन नाम उपकेशपुर ओसियाँ नागपुर नागोर मेदिनीपुर मेड़ता मुग्धपुर मुंदियाड़ खटकुंपपुर खिवसर कच्चुरपुरा कुचेरा हर्षपुर हरसाला खीजूरपुर खजवाणा रूणावती असिकादुर्ग पासोप शंखपुर संखवाय पद्मावती पद्मावती पादुग्राम जाबलीपुर जालौर विजयपट्टण फलोदी पुष्करणी पोकरण हंसावली हरसोर भवानीपटण भासणी धोलापुर (गढ़) धवलेरा चर्पटपुर चोपड़ा दान्तिपुर दांतीवाड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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