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________________ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास wwwmarw इन श्लोकों में कर्माशाह के पूर्वज सारंगशाह से लेकर कांशाह के पुत्र तक के नाम हैं जैसे १ सारंग २ रामदेव ३ लक्ष्मीसिंह ४ भुवनपाल ५ भोजराज ६ ठाकुरसिंह ७ क्षेत्रसिंह नरसिंह ६ तोलाशाह १० कर्माशाह ११ भिखो इत्यादि शिलालेख में तोलाशाह के छः पुत्रों का परिवार का उल्लेख किया है। उपरोक्त शिलालेख को अप्रमाणिक एवं जाली मानने का कोई भी कारण पाया नहीं जाता है यदि ऐसे शिला लेखों को भी अप्रमाणिक माना जाय तब तो इसके अलावे हमारे पाल सबल प्रमाण भी क्या हो सकता है इस शिलालेख को परिपुष्ट करने के लिये प्राचार्य बप्पट्टिसूरि और श्राम राजा का विस्तृत जीवन विद्यमान है उसमें भी स्पष्ट उल्लेख है कि प्राचार्य बप्पभट्टिसूरि ने राजा आम को प्रतिबोध देकर जैन बनाया और राजा आम ने ग्वालियर में एक जैन मन्दिर बनाकर उसमें सुवर्णप्रय मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई थी अतः इस प्रमाण में थोड़ी भी शंका नहीं की जा सकती है। पृष्ठ १६३ पर मैंने वल्लभी का भंग के विषय में कांकसीवाली कथा लिखी थी पर उस समय मेरे पास केवल पट्टावलिया एवं वंशावलियां का ही आधार था पर बाद में आचार्य जिनप्रभसूरि का लेख-"विविध तीर्थ कल्प" नामक ग्रन्थ देखने में आया तो उसमें भी इस कथा का ठीक प्रतिपादन किया हुआ दृष्टिगोचर हा जिसको यहां उद्धृत कर दिया जाता है। "इयो अगुज्जरधराए पच्छिमभागे बल्लहित्ति नयरी रिद्धि समिद्धा । तत्थ सिलाइचो नाम राया तेणय रयण जडिअ कंकसी लुद्धेण रंकोनामसिट्रि पराभूत्रो सो अ कुविओ तबिंग हणहर्थं गजणवह हम्मीरम्स पभूणं धणं दाउणं तस्स महंतं सेएणं अणिइ । तम्मि अवसरे वल्ल डीओ चंदप्पहसामि पडिमा अंबाखितवाल जुता अहिट्ठा यगव नेण गयण पहेण देवपट्टणं गया रहाहिरूढ़ा य देवया बलेण वीरनाइपडिमा अदिठवत्तोए संचरति आसोय पुरिणमाए सिरिमासं पुरमागया, अएणे वि साइसया देवा जड़ोचियं ठाणं गया पुरदेवयाए य सिरि वद्धमाणसूरीणं ल्याओ जाणावि प्रो-जत्थ मिक्खालद्वं खीरं रुहिरं होऊग पुणो खीरं होहिइ तत्थ साहूणेहिं ठायत्वं त्ति । तेण व सिन्नेणं विकमायो अहिं सरहिं पण पाहिं वरिसाणं गर्हि वलहिं भंजिऊण सो राया मारिओ गो सठाणं हम्मीरो।" “विविध तीर्थकल्प पृष्ट २६" प्राचार्य जिनप्रभसूरि लिखते हैं कि बजभी का शिलादित्य राजा रत्नजडित कांकसी के लिये रांका सेठ का अपमान कर जबरन् कांकसी छीन ली जिससे कोपित हो सेठ रांका ने प्रभूत द्रव्य देकर हम्मीर को ससैना लाकर वल्लभी का भंग करवाया राजा मारा गया इत्यादि । हाँ इस घटना का समय सूरिजी ने कम ८१५ का लिखा पर वल्लभी का भंग कडेवार होने से समय लिखने में भ्रांति रह जाना असंभव नहीं है जैसे पंचमी की सावत्सरी चतुर्थी को कलकाचार्य ने वीरान ४५३ के आसपास की थी पर अन्यकालकाचार्य वीरान ६६३ में हो जाने से कइ लेखकों ने पंचमी की चतुर्थी करने का समय भी वीरान ६६३ का लिख दिया है यही बात जिनप्रभसूरि के लिये बन गई हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है खैर कांकसी वाली घटना जिनप्रभसूरि ने लिखी है वह पट्टावलियों से ठीक मिलती हुई है। ___मैंने मेरे ग्रन्थ के पृ० १२२ से २१२ तक में महाजनसंघ, उपकेशवंश और ओसवाल जाति की मूलोत्पति के विषय में प्रमाणों का संग्रह कर यह स्पष्ट सिद्ध कर दिया है कि महाजन संघ की उत्पति का समय ठीक वीरात् ७० वर्ष का है पट्टावलियों के साथ कई ऐतिहासिक प्रमाण भी उद्धृत किये थे जिनमें मेरी असावधानीसे जो गलतियाँ रह गई थी उसका सुधार ऊपर लिख दिया है। और उपरोक्त प्रमाणों से महाजन संघ की मूलोत्पति का समय विक्रम पूर्ण ४०० वर्ष सिद्ध हो जाता है। . इनके अलावा सम्राट सम्पति का जीवन पर दृष्टि डाली जाय तो इस विषय पर और भी अच्छा प्रकाश पड़ सकता है । इस विषय में एक प्रश्न खड़ा होता है कि महाजन संघ की उत्पति सम्राट सम्प्रति के पूर्व हुई थी या बाद में! marnawww १५४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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