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आचार्य सिद्धरि का जीवन ]
[ओसवाल सं० १५२८-१५७४
७-पल्लीवालगच्छ-इस गच्छ में भी कई प्रभाविक आचार्य हुए हैं, आचार्य यशोभद्र सूरि, प्रद्योम्नसूरि अभयदेव सूरि वगैरह जिन्होंने कई अजैनों को जैन बनाए । समयान्तर में कई कारणों से उनकी कई जातियां बनगई और उन प्राचार्यों से पल्लीवालगच्छ का भी प्रादुर्भाव हुआ। १-धोखा, २-बोहरा ३डूंगरवालादि जातियाँ पल्लीवाल गच्छोपासक कही जाती हैं।
कदरसागच्छ-इस गच्छ में आचार्य पुण्यवर्धन सूरि, महेद्रसूरि, आदि कई प्रभाविक आचार्य हुए हैं। उन्होंने अपने भ्रमण के अन्दर कई जैनत्तरों को जैन बनाये आगे चल कर कई कारणों से उनकी कई जातियां बन गई जैसे-१-खाबड़िया, २~ांग, ३--बंब बंग, ४ दूधेड़िया ५-कटोतिया वगैरह इन जातियों की वंशावलियां इस गच्छ के महात्मा ही मांडते हैं।
. सादेरावगच्छ-इस गच्छ में प्राचार्य ईश्वरसूरि, यशोभद्रसूरि, शालभद्रसूरि, सुमतिसूरि, शांतिसूरि, वगैरह महान् प्रतिभाशाली श्राचार्य हुए हैं उन्होंने भी बहुत से जैनेत्तरों को जैन धर्म की दीक्षा देकर महाजन संघ में शामिल किये और आगे चल कर कई जातियां बन गई जिसकी नामावली निम्न है:-१-गुंगलिया, २-भण्डारी, ३-चुतर, ४-दूधेड़िया, ५-धारोला, ६-कांकरेचा, ७-बोहरा, ८-शीशोदिया इत्यादि १२ जातियों के नाम साढ़ेराव गच्छ की पोशालों वाले लिखते थे पर किसी समय एक पोशाल वाले ने अपनी वंशावलियों की बहियां किसी प्रसंग पर आसोप के खरतरगच्छीय महात्माओं को दे दी तब से कहीं कहीं पर उपरोक्त जातियों की वंशावलियां आसोप के खरतरगच्छीय महात्मा भी लिखते हैं।
- वृहद्त्तपागच्छ-इस गच्छ में भी महान् प्रभाविक आचार्य हुए हैं जैसे जगच्चन्द्रसूरि, देवीद्रसूरि, धर्मघोषसूरि, सोमप्रभसुरि, सोमतिल कसूरि, देवेसुन्दरसूरि, सोमसुन्दरसूरि, मुनिसुन्दरसुरि, रत्नशिखरसुरि, श्रादि बहुत से आचार्य ऐसे हुए कि जिन्होंने बहुत से अजैनों को धर्मोपदेश देकर जैन बना कर महाजन संघ में शामिल कर उनकी वृद्धि की फिर आगे चल कर कई कारणों से उन नूतन जैनों की कई जातियां बन गई जैसे १-वरड़िया, वरदिया, बाहुदिया, २-बांठिया, कबाड़ शाह, हरखावत, ३ छरिया, ४-डफरिया, ५-ललवाणी, ६-गांधी, बैधगांधी, राजगांधी, ७-खजानची, ८ बुरड़, ६-संघवी, १०-मुनोयत, ११-पगरिया, १२चौधरी, १३-सोलंकी, १४-गुजराणी, १५-कच्छोले, १६-मोरड्ये, १७-सोलेचे, १८-कोठारी, १६-खटोल, २०-बिनायकिया, २१-सराफ, २२-लौकड़, २३-मिन्नी, २४-आंचलिया, २५-गोलिया, २६-पोसवाल, २७गोटी, २७-मादरेच, २६-जोलेचा, ३०-माला, इत्यादि बहुतसी जातियों के नाम हैं।
८-इस महाजन संघ में संघी, कोठारी, खजानची, इत्यादि कई ऐसी जातियाँ हैं कि जिनका नामकरण केवल काम करने से हुए हैं और ऐसे काम प्रत्येक जाति वालों ने किये हैं और प्र
प्रत्येक जातियों में पूर्वोक्त नाम मिलते भी हैं तब इनकी पहचान कैसे की जाय? इसके लिये या तो उनके मूल गौत्र एवं जाति का नाम पूछने से या नख पूछने से पता लग जाता है कि यह संघी फलां जाति के हैं।
दूसरा एक जाति का नाम एक गच्छ के अलावा दूसरे गच्छ में भी आता है जैसे नाहर, गंग, बंग, नक्षत्रादि के इसका कारण यह हो सकता है कि या तो एक-एक मूल जाति की शाखाएं ऐसी निकल गई जैसे एक गुगलिया जाति है तथा दूसरी किसी जाति वाले ने कहीं पर गुगल का व्यापार किया तब वे भी गुगलिया कहलाने लग गये तथा जब से महात्माओं में लग्न सादी होने लगी तब से एक पोशाल के महात्मा अपनी वंशावलियों की बहियाँ मुशाला में या दत्त-दायजा में भी दूसरे पोशाल वालों को देदेतें नतीजा यह हुआ कि उन जातियों की पहले अन्य गच्छ वाले वंशावलियां लिखते थे बाद दूसरी पोशालों वाले उनके नाम लिखने लग गये फिर दो चार पुश्त तक तो गृहस्थों को ज्ञान रहा कि हमारा मूल गच्छ तो फलां है पर बहियों के बदलने से दूसरे गच्छ के महात्मा हमारे नाम लिखते हैं परन्तु समयान्तर में वे गृहस्थ भी इस बात को भूल जाते
हैं और अधिक परिचय के कारण जो वंशावलियों लिखते हैं उनके पास अपने पूर्वजों की नामावली मिल जाने Jain E कई गच्छों के प्राचार्यों द्वारा अजैनों को जैन बनाना...
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