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वि० सं० १०७४-११०८]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
पोकरणा
दूधा ने
सुरवा
मुनियों को योग्य पदवियाँ प्रदान की। मुनि देवभद्र को सूरि योग्य सकल गुणों से सुशोभित देखकर उन्हें सूरि पदार्पण किया। परम्परागत नामावली के अनुसार आपका नाम श्री देवगुप्तसूरि रख दिया। इसके सिवाय-ज्ञान कल्लोलादि सात मुनियों को उपाध्याय पद, हर्षवर्द्धनादि ७ मुनियों को गणिपद, देवसुन्दरादि नवमुनियों को वाचनाचार्य, शांति कुशलादि ग्यारह मुनियों को पण्डित पद से विभूषित किया । इस शुभ कार्य में भैंसाशाह ने ग्यारह लक्ष द्रव्य व्यय कर कल्याणकारी पुण्योपार्जन किया।
पूज्याचार्य देव के ३४ वर्षों के शासन में मुमुक्षुओं की दीक्षाएँ १–क्षत्रीपुर
डिडूगौत्र जाति के शाह कल्हण ने सूरिजी की सेवा में दीक्षाली २-राजपुर
देसरड़ा
" " डूगर ने ३-मेदिनीपुर नक्षत्र
पद्मा ने ४-कुचूरपुर सिंघवी
देवा ने ५-भोभारी बोहरा
कुम्मा ने ६-ब्रह्मपुरी
रोड़ा ने ७-कांतिपुर रांका
भाखर ने ८-उपकेशपुर चीला
वरधा ने ६-नागपुर गुलेच्छा
चंपसी ने १०-शंखपुर
जांघडा ११-कोरंटपुर
धन्ना ने १२-पान्हिका भुरंट
भाला ने १३-डांगीपुर संचेती
नारायण ने १४-पासोली मादलिया
जैता ने १५-भानापुर चंडालिया
करमण ने १६-आघाट नगर चौमुहला
साहरण ने १७-मोकलपुर काजलिया
छाजू ने १८-जाबलीपुर तोडियाणी
मल्हा ने १६-पद्मावती श्रेष्टि
गुणाढ़ ने २०-दशपुर बाफरणा
खेमा ने २१-चित्रकोट सेखाणी
चेला ने २२-माडवगढ़ पाल्लीवाल
जोगड़ ने २३-उज्जैन प्राग्वट वंश ,
मजा ने २४-भरोंच
माना ने २५-स्तभनपुर
हाप्पा ने २६-सोपार
हरपाल ने २७-करणावती
भादू ने २८-ठाणापुर श्रीमाल वंश ,
पोमा ने २६-बर्धमानपुर के
अर्जुन ने ३०-सालरी
नांगदेव ने ३१-देवपुर
वीरम ने
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सराश्वरजी के शासन में दीक्षाएँ
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