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________________ आचार्य सिद्धरि का जीवन ] [ श्रोसवाल सं० १४३३-१४७४ बैठ जाऊ' तब तत्क्षण मेरे मस्तक, कान, नाक मुंह और आंखों के छिद्रों में रुई के फोहे रख देना । ऐसा कह पद्मासन जमा पूरक को पूर्ण कर एड़ी से चोटी तक एकदम स्थिर हो गये । रानी से प्राणायाम करने के पूर्व ही पूछा था कि निरुद्ध श्वास वायु को किस छिद्र से छोडूं ? उनके ऐसा कहने पर रानी ने प्रत्युत्तर दियादशम द्वार ( ब्रह्मरन्ध्र) से पवन को छोड़ो क्योंकि एक यही द्वार छिद्र रहित है। रानी का प्रत्युत्तर सुन मुनि पद्मप्रभ ने पूरक द्वार से भरे हुए श्वास वायु को उस रानी के कथनानुसार दशम द्वार से छोड़ा जिससे तत्रस्थ रूई उड़ गई और अन्य स्थान स्थित ज्यों की त्यों रह गई । इस चमत्कार को देख रानी ने अपने आसन से उठकर मुनि के चरणों में नमस्कार किया और कहाआज से आप हमारे पूज्य आराध्य तथा सदा सेवनीय गुरू हैं। यह कह कर स्वर्ण निर्मित चतुष्काष्ठी (चौकी) तथा कपरिका (कवली) एवं श्रेष्ठ श्रव वाले मोती और रत्नों से युक्त एक भुंवना बनवा कर गुरू को भेंट किया । इस पर मुनि ने नहीं स्वीकार करते हुए जैन श्रमणों के यम नियमों को समझाया और उस द्रव्य को शुभ कार्य में लगाने के लिये प्रेरित किया । इस प्रकार योग विद्या और वचन सिद्धि से प्रभावित हो वाचनाचार्य श्री पद्मप्रभ के चरण कमलों में बड़े २ राजा महाराजा आकर मस्तक नमाते थे । कहना होगा कि आपश्री ने अपनी चमत्कार शक्ति से जैन धर्म की बहुत ही प्रभावना की । इस प्रकार राजा आदि महापुरुषों से निरन्तर पूज्यमान महामुनि वाचनाचार्य पद्मप्रभ एक समय सपाद लक्ष ( सांभर, अजमेर ) देशों में बिहार करने के लिये निकले उस समय खरतर गच्छ के आचार्यश्री जिनपति सूरि के साथ पद्मप्रभ वाचनाचार्य ने गुरु के काव्याष्टक के सम्बन्ध में विवाद किया । श्री सम्पन्न अजयमेरु (अजमेर) के किले पर राजा वीसलदेव की राज सभा में श्री जिनपति सूरि को जीत लिया । इस प्रकार जम्बुनाग आचार्य की संतति ( शिष्य परम्परा ) का वाचनाचार्य पद्मप्रभ तक वर्णन किया है । इन महापुरुषों ने अपने पाडित्य व चमत्कारिक शक्तियों से जैन शासन की आशातीत उन्नति एवं प्रभाना की है। इन्हीं तेजस्वी आचार्यों की अलौकिक सत्ताने जिन शासन को अन्य दर्शनों के सामने आदर्श के रूप में रक्खा । ऐसे महापुरुषों के चरण कमलों में कोटि २ वंदन हो । १- सत्यपुरी २----मीन्नमाल ३- भूर्ति ४ - शिवगढ़ ५- सोनाली ६ - दामाणी ७- चोसरी 5- • कोरेटपुर ६ - खीमाड़ी नगरी के आचार्यश्री के शासन में भावुकों की दीक्षाएँ जाति के शाह सूराने विजा ने Jain Education International छाजेड़ आर्य पारख राखेचा पोकरणा पाल्लीवाल प्राग्वट 23 श्रीमाल आचार्यश्री के शासन में दीचाएं "" "" 25 " 39 35 55 "" 55 31 39 "" "" "" " "" कुम्भा ने पाता ने भोला ने जैता ने करमा ने जीवा ने डावर ने For Private & Personal Use Only सूरिजी के पास दीक्षाली "" 99 "" 39 * खरतर गच्छ की पढाचली के अनुसार जिनपति सूरि का जन्म वि० सं० १२१० में हुवा | वि० सं० १२१८ में दीक्षा, वि० सं० १२२३ में आचार्य और वि० सं० १२७७ में स्वर्गवास हुआ और अजयगढ़ में विशलदेव का राज सं० १२२४ तक रहा तब वाचनाचार्य पद्मप्रभ का समय के लिये राजा कुमारपाल का राज्य- समय वि० सं० ११९९ से १२४९ का है, इसी समय में उपाध्याय जिनभद्र व वाचक पद्मप्रभ हुए । 27 "" १४२६ www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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