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आचार्य कक्कसरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ११७८-१२३७
७-श्री शत्रुजय गिरनार की यात्रार्थ संघ निकाला । तीर्थ पर दो मन्दिर बनाये । संघ को स्वामिवात्सल्य जीमाकर सात-सात सुवर्ण सोपारियाँ प्रभावना के तौर दीं। ८-भ० महावीर की १०८ अंगुल सुवर्णमय मूर्ति बनाकर नये मन्दिर में प्रतिष्ठा करवाई। दुष्काल में करोड़ों द्रव्य व्यय किया । संघपूजा में वस्त्र भूषण पहरामणी में दिये । ९-सम्मेतशिखरजी तीर्थ की यात्रार्थ संघ निकाल चतुर्विधश्रीसंघ को पूर्व देश की सर्व यात्रा करवाई
वापिस आकर संघ पूजा कर एक-एक सुवर्ण मुद्रा लढ्ढ़ में डाल गुप्तपने लहण दी। १०-आपको देवी की कृपा से पारस मिला था । लोहे का सुवर्ण बनाकर धार्मिक एवं जनोपयोगी कार्यों में पुष्कल द्रव्य व्यय किया । संघपूजा कर साधर्मी भाइयों को सोने की कंठियाँ तथा बहिनों को सोने
के चूड़े पहरामणी में देकर शासन की खूब प्रभावना की। ११-दुष्काल में मनुष्यों को अन्न वस्त्र पशुओं को घास दिया जिसमें सात करोड़ द्रव्य खर्च किया तथा
चार बड़े तालाब, चार बावड़ियाँ और सात मन्दिर बनाकर प्रतिष्ठा करवाई। १२- श्री शत्रुजयादि तीर्थों का संघ निकाला । संघपूजा कर सोने की सोपारियों की लहण दी। १३-सात बार श्रीसंघ को घर पर बुलाया भोजन करवाकर एक-एक मुहर की लाहणी दी। १४-सात आचार्यों को सूरिपद दिराया। श्री भगवतीजी सूत्र का महोत्सव पूजा करके व्याख्यान में
बँचाया जिसमें पांच करोड़ द्रव्य व्यय कर शासन का बड़ा भारी उद्योत किया। ज्ञान भण्डार स्या० । १५-सम्मेतशिखरादि तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाल चतुर्विधश्रीसंघ को यात्रा करवाई तथा जाते आते
समय पृथक् मार्ग में समुद्र तक साधर्मियों को एक-एक सुवर्ण मुद्ररा की लहण दी। १६-केशर, कस्तूरी, धूप, कर्पूर की पुष्कल बालदों को खरीद कर मन्दिरों में अर्पण कर दिया । १७-शजयादि तीर्थों की यात्रार्थ संघ निकाल कर भ० आदिनाथ को चन्दन हार अर्पण किया। १८-सम्मेतशिखरजी तीर्थ की यात्रार्थ संघ निकाल पूर्व की तमाम यात्रायें श्रीसंघ को कराई। वापिस
आकर स्वामिवात्सल्य कर श्रीसंघ को वस्त्राभूषण पहरावणी में दिये।। १९- सत बड़े यज्ञ (जीमणवार ) किये संघ को घर पर बुलवा कर पूजा की एक एक मुहर दी २०-आपको गुरु कृपा से तेजमतुरी प्राप्त हुई थी जिससे पुष्कल सुवर्ण वनाकर तीर्थो का संघ निकाला
नये मन्दिर बनाये जीर्ण मन्दिरों का उद्धार करवाया निराधारों को आधार दिया जैनधर्म के प्रचारार्थ करोड़ों का द्रव्य व्यय किया। संघपूजा कर सेर भर की थाली लहण में दी। २१- शत्रुजयादि तीर्थों का संघ निकाल चतुर्विध श्रीसंघ को यात्रा करवाई । तीर्थ पर स्वर्णमय ध्वज दंड
चढ़ाया। बावन जिनालय का 'दिर बनवाया। संघ पूजा कर पाँच पाँच मुहरें लहण में दी। २२-दुकाल में चौरासी देहरी का मन्दिर बनाया। सात तालाब सात कुए बनाये पुष्कल द्रध्य खर्च
किया । और सात यज्ञ करवा कर श्रीसंघ की पूजा कर पहरामणी दी। २३- शत्रुजय गिरनार की यात्रार्थ संघ निकाला जाते आते सर्वत्र एक एक सुवर्ण मुहर की लहण दी । २४-सात आचार्यों को सूरिपद दिलाया जिसका महोत्सव व साधर्मी भाइयों को पहरामणी भी दी। २५- सम्मेतशिखरजी की यात्रार्थ संघ निकाल पूर्व की यात्रा की संघपूजा में पुष्कल द्रव्य व्यय किया। २६-शत्रुजय गिरनारादि की यात्रार्थ संघ निकाल चतुर्विधश्रीसंघ को यात्रा करवाई एवं लहण भी दी।
७॥ शाहों की ख्याति
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