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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] श्रीमान् सूराचार्य विश्व-विख्यात और धनधान्य पूर्ण समृद्ध शाली गुर्जर भूमि के अलंकार स्वरूप अहिरल पट्टन राज्य करता था । उस समय के पाटण में चैत्यबासियों का प्रगण्य नेता थे और राजा भीम के संसार पक्ष में भी मामा थे। श्री द्रोणाचार्य के संसार पक्ष में एक संग्रामसिंह नाम का भाई था । संग्रामसिंह के एक पुत्र था जिसका नाम महिपाल था । जब संग्रामसिंह का देहान्त हो गया तब उसकी पत्नी ने अपने पुत्र महिपाल को द्रोणाचार्य के सुपुर्द कर दिया । आचार्यश्री ने भी महिपाल को होनहार व भावी महापुरुष होने वाला समझकर अपने पास में रख लिया और ज्ञानाभ्यास करवाना प्रारम्भ करवा दिया। महिपाल की बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि वह दिये हुए पाठ को लीलामात्र में ही कण्ठस्थकर एवं समझ लेता था । इस तरह अपनी बुद्धि व परिश्रम के प्रभाव से वह व्याकरण, न्याय, तर्क छंद अलंकारादि साहित्य में धुरंधर विद्वान बनगया । द्रौणाचार्य ने महिपाल को शुभमुहूर्त में दीक्षा दे दी और स्वल्प समय में सूरि पद अर्पण कर श्रापका नाम सूराचार्य रख दिया । सूराचार्य एक महान् प्रतिभाशाली आचार्य थे । आपकी विद्वत्ता की प्रशंसा सर्वत्र प्रसरित थी । वादी तो आपका नाम सुनकर के घबरा उठते और सुदूर प्रान्तों में पलायन कर जाते थे । नाम का एक प्रसिद्ध नगर था । वहां भीम भूपति साम्राज्य वर्त रहा था चैत्यवासियों में द्रोणाचार्य एक समय की बात है कि धारा नगरी का राजा भोज अपनी पण्डित सभा का बड़ा गौरव समझता था । वह अपने राज्य के पण्डितों के सिवाय दूसरे राजाओं के पण्डितों को कुछ चीज ही नहीं समझता था । एकदिन राजा भोज ने अपने प्रधान पुरुष को एक गाथा देकर पाटण के राजा भीम के पास भेजा। प्रधान पुरुष ने भी पाटण की राज सभा में आकर अपने राजा की गुण स्तुति की व एक गाथा राजा की सेवा उपस्थित की । हेला निद्दलिय गइंदकुंभ - पयडियपयावपसरस्स | सीहस्स भएण समं न बिगहो ने य संघाणं ॥ [ ओसवाल सं० १९७८-१२३७ उक्त गाथा की अवज्ञा करके भी पाटण नरेश ने व्यवहारिक नीत्यनुसार धारा से आये हुए प्रधान पुरुष का उचित सम्मान कर उन्हें राजभवन में ठहरा दिया । और भोजन आदि का सब प्रबन्ध कर दिया । इधर राजा भीम ने अपने प्रधान पुरुषों को कहा कि अपनी सभा एवं नगर के पण्डितों द्वारा इस गाथा के प्रतिकार में एक गाथा तैय्यार करवावो । प्रधानों ने भी राजा की आज्ञानुसार नगर के सब पण्डितों इस बात की सूचना करदी । नगरस्थ सकलपण्डित जन समुदाय ने स्व २ मत्यनुकूल गाथाएं उसके प्रत्युत्तर में बना कर राजा भीम को सुनाई पर राजा का दिल किञ्चित् भी सन्तुष्ट नहीं हुआ असंतुष्ट मन से राजा ने पूछा- क्या पाटण में और विद्वान कवि नहीं है ? इस पर मंत्री वगैरह नगर में निगह करने के लिये चले एवं चलते हुए गोवीन्द्राचार्य के चैत्य में श्राये उस समय चैत्य में महोत्सव हो रहा था जिसमें एक नृतकी ने भक्ति के बस हो नाच किया पर जब उसको श्रम हुआ तो एक स्तम्भ के पास जाकर खड़ी हुई उस समय सूराचार्य ने एक गाथा बनाइ जिसको सुन कर राज पुरुष मंत्रमुग्ध बनकर राजा भीम के पास जाकर अर्ज करदी "आचार्यगोविंदसूर के पास सूराचार्य एक महान् विद्वान मुनि हैं । वे कवित्व शक्ति में अनन्य अनुपमेय हैं। कि धारा की गाथा का उत्तर वे ही श्राचार्य लिख सकेगा । राजा ने कहा कि वे तो अपने राजगुरु ही है बस " उसी समय मंत्रियों को भेज कर राजा ने उनको बुलवाया । सूराचार्य के राज सभा में आने पर राजा ने वन्दन कर उक्त गाथा के प्रतिकार में इसी के अनुरूप या इससे सवाई गाथा बनाने के लिये प्रार्थना सूराचार्य की दीक्षा और सूरिपद १५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only १२४१ www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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