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________________ आचार्य ककसूरि का जीवन ] [ओसवाल सं० ११७८-१२३७ धनपाल ने सोचा कि यह सत्य कहने का समय है और ऐसे समय में मुझे सत्य कहना ही चाहिये अतः धनपाल ने कहा दिग्वासा यदि तत्किमस्य धनुषा शास्त्रस्य किं भस्मना ? भस्माप्यस्य किमङ्गना यदि च शा कामं परि द्वेष्टि किम् ! इत्यन्योन्य विरुद्वचेष्टितमहो पश्यनिजस्वाभिन ? भुंगी शुष्कशिरावनद्धमधिकं धत्तेऽस्थि शेपं वप्रः? अर्थात् जहां पर दिशारूप वस्त्र हैं वहां धनुष की क्या आवश्यकता ? और सशस्त्रावस्था हो तो भस्म की क्या आवश्यकता ? यदि भस्म शरीर के लगावें तो स्त्री की क्या जरूरत ? यदि रमली है तो काम पर द्वेष क्यों ? ऐसे परस्पर विरुद्ध चिन्हों से दुःखी होने के कारण इसका शरीर कृष होगया है। वहां से निकल कर बाहिर आये तो व्यास याज्ञवल्क्य स्मृति उच्चस्वर से वांच रहा था। राजा स्मृति के सुनने को बैठ गया पर धनपाल को विमुख देख राजा ने कहा-धनपाल ! क्या तेरे दिल में स्मृति के प्रति श्रादर नहीं है। इस पर धनपाल ने कहा-मैं लक्षण रहित अर्थ को समझ नहीं सकता। भला, साक्षात् विरुद्ध बातें सुनने को कौन तैयार है ? मैंने तो सुना है कि स्मृतियों में विष्टा खाने वाली गायका स्पर्श करने पर पाप छूट जाता है । संज्ञा हीन वृक्ष वंदनीय है। बकरे का वध करने से स्वर्ग मिलता है। ब्राह्मणों को दान देने से पूर्वजों को मिलता है, कपटी पुरुष को आप्त देव मानना, अग्नि में होम करने से देवताओं की प्रसन्नता स्वीकार करना इत्यादि श्रुविस्मृतियों में बतलाई आसार लीला को सुनने के लिये कौन बुद्धिमान तैय्यार है ? एक समय यज्ञ के लिये एकत्रित किये गये पशु पुकार कर रहे थे । उक्त पुकार को राजा भोज ने सुना और धनपाल को पूछा कि ये पशु क्यों पुकार करते हैं ? पं. धनपाल ने कहा-मैं पशुओं की भाषा में समझता हूँ ! पशु कह रहे हैं कि सर्व गुण सम्पन्न ब्रह्मा बकरों को कैसे मार सकता है ? दूसरा वे कहते हैं कि हम को स्वर्ग के सुखों की इच्छा नहीं है और न हम ने प्रार्थना ही की। हम तो तृण भक्षण में ही संतुष्ट हैं यदि स्वर्ग का ही इरादा है तो अपने माता पिता पुज स्त्री का बलिदान कर स्वर्ग क्यों नहीं भेजते ? __ धनपाल के विपरीत वचनों को सुनकर राज कोपायमान हुआ और धनपाल को मारडालने का विचार किया । पश्चात् राज भवन की ओर पाते हुए मार्ग में एक ओर एक बालिका के साथ वृद्धस्त्री को खड़ी देखी । बालिका के कहने पर उसने नव बार शिर धुनाया यह देख राजा ने धनपाल से पूछा, इसपर धनपाल ने कहा-हे नरेश ! आप को देख बालिका वृद्ध से पूछती है कि क्या ये-मुरारि, कामदेव, शंकर कुबेर, विद्याधर चन्द्र, सुरपति या विधाता हैं ? उक्त नव प्रश्नों के लिये नव बार शिर धुना कर वृद्धा कहती है कि नहीं, ये तो राजा भोज हैं । धनपाल के इस चातुर्य से गजा का दिल बदल गया और उसने पं० धनपाल को नहीं मारने का निश्चय कर लिया। एक समय राजा भोज शिकार के लिये जाते हुए पं० धनपाल को साथ में ले गये । अन्य शिकारियों ने एक बाण सूअर के ऐसा मारा कि वह अाक्रन्दन करता हुआ भूमिपर गिर पड़ा। उस समय अन्य पण्डितों ने राजा को कहा--स्वामी ! स्वयं सुभट हैं अथवा उनके पास में ऐसे सुभट न हो। इतने ही में राजा की पं० धनपाल और राजा भोज १२३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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