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________________ वि० सं० ७७८-८३७ ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास राज घराने के जैन हो जाने के पश्चात तो नागरिक लोगों को जैन बनाने में विशेष सुगमता रहेगी । पूज्यवर ! स्वयं राजा के मुंह से मैंने आपकी बहुत ही प्रशंसा सुनी । उनकी भी यही इच्छा है कि गुरुदेव का यह चातुयहीं होना चाहिये । इस प्रकार मंत्री उदा की प्रार्थना को सुनकर सूरिजीने कहा — जैसी - क्षेत्र स्पर्शना । राजा के जैन धर्म स्वीकार करने के बाद वाममर्गियों ने बहुत कुछ उपद्रव मचाया पर राजा ने तो जान बूझ कर मांस, मदिरा और व्यभिचार का त्याग किया था और तत्वों को समझ करके जैनधर्म को स्वीकार किया था अतः राजा पर उन पाखण्डियों का ज्यादा असर नहीं हो सका । राजा के सात पुत्र थे और वे भी अपने पिता के मार्ग का अनुसरण करने वाले विनयवान् ही थे पाखण्डियों ने अपना जाल कई पुत्रों को फंसाने के लिये फैलाया पर राजा की धार्मिक कट्टरता के कारण उनके पुत्रों पर भी पाखण्डियों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ सका जब राजा को पाखण्डियों के विषय में मालूम हुआ तो उन्होंने अपने सातों पुत्रों को बुलाकर कहा- मैंने जो जैनधर्म स्वीकार किया है वह न अज्ञानता से किया है और । फिर भी स्वार्थ सिद्धि के लिये ही । मैंने तो दोनों धर्मों के तत्वों को समझ कर अच्छी तरह कसौटी पर कस कर जैनधर्म को पवित्र व कल्याण कारी समझ कर के ही स्वीकार किया है । यदि तुम को मेरे पर विश्वास हो तो ठीक नहीं तो तुम लोग भी सूरीश्वर जी के पास जाकर इसके तत्वों को समझो । श्रन्यथा तुम को फुलबाने वाले ब्राह्मणों से कहो कि वे आचार्यश्री के साथ धर्म विषयक शास्त्रार्थ करें। अपने घर में दो पृथक २ धर्मों का होना व पारस्परिक धार्मिक समस्या के कारण मनोमालिन्य रहना भविष्य के लिये हानिकर है। राजा के पुत्र भी समझ गये कि हमारे पिताश्री जी की प्रकृति में जैनधर्म स्वीकार करने के पश्चात् पर्याप्त फरक पड़ा है और यह सब धर्म का ही प्रभाव है अतः उन्होंने अपने पिता से विनय पूर्वक कहापिताजी ! आप हमारी ओर से सर्वथा निश्चिन्त रहे । हमें आप पर और जिनधर्म पर दृढ़ विश्वास है। हम तन, मन, धन से जैनधर्म का पालन व प्रचार करने के लिये कटिबद्ध है । राजा, राजा की राणी, राजा के पुत्र वगैरह सब सूरीजी के व्याख्यान में नियमानुसार हाजिर हो ध्यान पूर्वक व्याख्यान श्रवण का लाभ उठाते । व्याख्यान श्रवण एवं मुनि सत्संग में उन्हें इतना रस आया कि उन्होंने चातुर्मास के लिये श्रमह पूर्वक सूरीश्वर जी की सेवा में प्रार्थना की । श्राचार्यश्री ने भी धर्म विषयक संस्कारों को विशेष स्थायी बनाने के लिये वही चातुर्मास कर दिया । अब तो राजा का सकल परिवार जैनधर्म का परम उपासक बन गया । इनके साथ ही इनको अनुसरण कर सैंकड़ों नर नारी जैन धर्म के भक्त बन गये । इससे शासन की पर्याप्त प्रभावना हुई। राजा ने मांडव्यपुर में चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्वामी का एक मन्दिर बनवाया। उसके तैयार हो जाने पर जिनालयजी की प्रतिष्ठा भी सूरीश्वरजी के कर कमलों से ही करवाई थी । वंशावलीकारों ने राजा का परिवार इस प्रकार लिखा है: - Jain Educ national राव महाबजी ने जैन धर्म स्वीकारकर लिया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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