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वि० सं० ७२४-७७८]
[ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
पहना दी और आपने अपनी पत्नी, दो पुत्र तथा १० दूसरे स्त्री पुरुषों के साथ में परम वैराग्य पूर्वक दीक्षा स्वीकार करली । इन सब भावुकों की दीक्षा के पश्चात् शुभमुहूर्त में संघ पुनः नाकुल के संघपतित्व में लौट गया। मथुरा तक तो आचार्यश्री भी स्वयं संघ के साथ में रहे पर बाद में आप मथुरा में ही ठहर गये । संघ अन्य मुनियों के साथ सकुशल निर्विन भरोंच नगर आगया । संघपति नाकुल ने स्वधर्मों भाइयों को एक एक स्वर्णमुद्रा एवं वस्त्रों की पहिरावणी देकर संघ को विसर्जित किया। सेठ मुकुन्द ने इस संघ के लिये एक कोटि द्रव्य का संकल्प किया था वह व्यय होगया।
अहा हा...! आत्मकल्याण के लिये वह जमाना कितना उत्तम था ? था-तो उस समय भी पांचवां आग ही किन्तु जैनाचार्यों के त्याग वैराग्यमय उच्च जीवन ने उसे चौथा आरा बना दिया।
___ आचार्यश्रीसिद्धसरिने अपना शेष जीवन जैनधर्म के अभ्युदय एवं शासन प्रभावना के ही कार्यों में व्यतीत किया । श्राप जैनधर्म के सुदृढ़स्तम्भ, जैनसमाज के परम शुभचिंतक, महाजनसंघ के रक्षक, पोषक एवं वृद्धिकर्ता, वादी विजयी, प्रसिद्धवक्ता, धर्म प्रचारक, वीराचार्य थे । आपने ५४ वर्ष के शासन में अधिक से अधिक धर्मप्रचार किया। आपके वका वीरपरम्पर के बहुत से प्राचार्यवर्तमान थे किन्तु आपका उन सभी आचार्यों के साथ भातृभाव एवं वात्सल्यता थी। सबके साथ हिलमिल कर संगठित अक्षीण शक्ति से शासन सेवा करने का आपका प्रमुख गुण था। आपने जैनश्रमण संख्या में उत्तरोत्तर घृद्धि की उसी तरह महाजनसंघ की भी आशातीत उन्नति की । अन्त में आपने मरुधर के मेदिनीपुर नगर के श्रेष्टिगोत्रीय शा. लीम्बा के महामहोत्सव पूर्वक उपाध्याय मूर्तिविशाल को सूरिपद से विभूषित कर परम्परानुसार आपका नाम ककसूरि रख दिया । पश्चात् परम निवृत्ति में संलग्न हो गये । २७ दिन के अनशन के साथ समाधि पूर्वक स्वर्ग सिधार गये।
ऐसे प्रभाविक श्राचार्यों के चरणकमलों में कोटिशः वंदन हो श्रापश्री के द्वारा किये गये शासन के मुख्य २ कार्यों की नामावली निम्न प्रकारेण है:
पूज्याचार्य देव के ५४ वर्ष का शासन में मुमुक्षुओं की दीक्षाएं १-उपकेशपुर के श्रेष्टि गौत्रीय सहदेव ने दीक्षाली २-पण्डितपुरा , कालाणी , जालडा ने ३--क्षत्रिपुरी ,, पल्लीवाल , नारायण ने ४-कानाणी संधवी
जसाने ५-सालीपुर ,प्राग्वट
रांणाने ६-मरोड़ी "प्रावट
देदाने ७-नाराणी श्री श्रीमाल
करमण ८-भवानीपुर अग्रवाल
भोमा ने ९-रूणावती
बीरम ने १०-नारवाडी
राजसी ने ११- मेदनीपुर पल्लीवाल
विमल ने ११२४
सूरिजी के शासन में दीक्षाए
"प्राग्वट
" भूरि
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