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________________ वि० सं० ६६०-६८.] [ भगवान् पाश्वनाथ की परम्परा का इतिहास फिर आपसी फूट, कुसम्प एवं कदाग्रह से इसका कितना ही हस हो तो उनको दुःख ही क्या ? यदि उन्हें इस विषय का दुःख होता तो नये२ मत्त पन्थ निकाल कर संघ में फूट डाल आपस में कलह से शासन की लघुता नहीं करते और पार्श्वनाथ सन्तानियों की तरह चारों ओर विहार कर विद्यमान जैनों की रक्षा एवं अजैनों को जैन बनाने का श्रेय सम्पादन करते । खैर ! पसङ्गोपात सम्बन्ध श्रागया जिससे निरङ्कुश कलम काधू में न रह सकी । श्रतः दुःखित श्रात्मासे थोड़ी आवाज निकल ही गई । अतः आपसी प्रेम में जब तक प्राधिक्य रहा तब तक जैन शासन की गति अविच्छिन्न रूप से चली आई । जैन समाज में सर्वत्र आनंद एवं सुख का साम्राज्य था । अस्तु, अनेकानेक प्रान्तों में घूमते हुए और अपने शिष्य समुदाय को प्रोत्साहित कर धर्म प्रचार के कार्य में आगे बढ़ते हुए कालान्तर में आचार्यश्रीकक्कसूरिजी म. क्रमशः उपकेशपुर में पधार गये । दुर्देवचशात श्राप के शरीर में अकस्मात असह्य वेदना का प्रादुर्भाव हुआ। आपश्री के मुख से ही अचानक निकल गया कि-मैं इस उग्र वेदना से बच नहीं सकूगा । बस यह सुनते ही सर्वत्र उदासीनता का वातावरण पैदा हो गया पर कर्मों की गति की विचित्रता के सामने किसकी क्या चल सकती थी ? अतः आचार्यश्री के आदेशानुसार चारेलिया जाति के शा० भेरा के महोत्सव पूर्वक पट्ट योग्य मुनि विमल प्रभ को सूरि पद अर्पण कर आपका नाम देवगुप्तसूरि रख दिया । आचार्यश्रीकक्कसूरिजी भी ७ दिन के अनशन के साथ समाधि पूर्वक स्वर्गधाम पधार गये। भापश्री के द्वारा किये हुए शासन के कार्यों का अब कुछ दिग्दर्शन करा दिया जाता है: श्राचार्य देव के २० वर्ष के शासन में मुमुक्षुत्रों की दीक्षाए १-शाकम्मरी के कनोजिया गौत्रीय रावल ने दीक्षाली २-मेदनीपुर , अदित्य० , वाला ने , ३-हंसावली , श्रेष्टि , मेघा ने , ४-मुग्धपुर , सुचंति भीमा ने ५-खटकुम्प , श्री श्रीमाल गोखाने ६-शंखपुर , चरद फूश्रा ने ७-हर्षपुर , लुंग ८-आनंदपुर , दूधड़ देदा ने ९-निंबली , बप्पनण १०-सत्यपुरी , भाद्र तीला ने ११-विजापुर , कुम्मट जोगा ने १२-मादडी , भूरि १३-हथुड़ी , मोरख ऊहड ने १४-कोरंटपुर , चोरडिया रोडा ने १५-नारदपुरी , बोहरा आइदान ने १०८० सूरीश्वरजी के शासन में दीक्षाएं पेथा ने थेरू ने चाहड ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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