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________________ वि० सं० ३३६-३५७ वर्ष ] भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास चेतना हो तो चेत लो यह सुअवसर हाथों से जाता है। आयुष्य का क्षण मात्र भी विश्वास नहीं है । यदि आपको जन्म मरण के दुःख मिटा कर अक्षय सुखी बनना है तो आज लो कल लो देरी से लो या भवान्तर में लो दीक्षा अवश्य लेनी पड़ेगी पर भविष्य में न जाने कैसे संयोग एवं साधन मिलेंगे वे दीक्षा लेने में साधक होंगे या बाधक ? अतः मेरी सलाह तो यही है कि क्षणमात्र का विलम्ब न करके अभी दीक्षा लेकर मोक्ष को नजदीक कर लेना चाहिये इत्यादि । सूरिजी के उपदेश ने तो मोह-निद्रा में सोते हुये भावुकों को जागृत कर दिया । संघपति कर्मा ने सोचा कि क्या सूरिजी ने आज मुझे ही उपदेश दिया है। पर आपका कहना अक्षरशः सत्य है चाहे द्रव्य दीक्षा लो चाहे भाव दीक्षा लो पर यह तो निश्चय है कि दीक्षा बिना मोक्ष नहीं है तो मुझे तो आज ही सूरिजी के पास दीक्षा लेलेनी चाहिये । बस, फिर तो देरी ही क्या थी मनुष्य की भावना ही फिरनी चाहिये । कर्मा को जिधर देखे संसार असार लगने लग गया । उसने उठकर सूरिजी से अर्ज की प्रभो ! आपका कहना सत्य है और मैं उसे स्वीकार करने को भी तैयार हूँ । परिषदा के लोग शाह कर्मा के शब्द सुन कर चकित रह गये कि संघपति यह क्या कह रहा है ? कई लोगों सोचा कि संघ दीक्षा लेने को तैयार है तो अपने को ऐसा अवसर हाथों से क्यों जाने देना चाहिये । पहिले भी इनके साथ तीर्थयात्रा की तो अब भी संयम यात्रा करनी चाहिये कई ३० नरनारी कर्मा के साथ होगये और कर्मा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र धन्ना को संघपति की माला एवं सब घर का भार सुपुर्द कर के आपने ३० नरनारियों के साथ भगवान् महावीर के मन्दिर में सूरिजी के कर कमलों से भगवती जैन दीक्षा स्वीकार कर ली क्षयोपशम इसका ही नाम है जैसे समुदानी कर्म एक साथ बँधते हैं वैसे ही पूर्वभव के कृतकर्म से कर्मों का क्षयोपशम भी एक साथ में होजाता है । जम्बुकुँवर के था तब इन्द्रभूति आदि के साथ ४४०० ब्राह्मणों का सम्बन्ध था एक साथ में ही दीक्षित हुये थे । आचार्य श्री ने सबको दीक्षा देकर संघपति कर्मा का नाम धर्मविशाल रख दिया था । तदान्तर मुनि धर्मविशाल ने ज्ञानाध्ययन कर धुरंधर विद्वान होगये तथा सर्वगुण सम्पादित कर लिये तो आचार्य यक्षदेवसूरि ने शाकम्भरी नगरी में श्रीसंघ के महामहोत्सव पूर्वक मुनि धर्म विशाल को सूरिपद से विभूषीत कर आपका नाम कक्कसूरि रख दिया। जो नाम के पट्टपरम्परा से क्रमशः चला आ रहा था - साथ ५२७ जनों का सम्बन्ध आचार्य कक्कर बड़े ही विद्वान् प्रतिभाशाली और धर्मप्रचारक आचार्य हुये । आचार्य ककसूरि सपादलक्ष प्रान्त में सर्वत्र विहार करते हुये नागपुर पधारे । वहाँ के बाप्पनाग गोत्रिय शाह पुनड़ ने सवा लक्ष रुपये व्यय करके सूरिजी के नगर प्रवेश का बड़ा ही समारोह से महोत्सव किया। सूरिजी का व्याख्यान हमेशा होता था और जनता पर प्रभाव भी खूब ही पड़ता था। एक दिन सूरिजी ने उकेशपुर का वर्णन करते हुये फरमाया कि जैसे शत्रु जय गिरनारादि तीर्थ हैं वैसे ही मरुधर में उपकेशपुर भी एक तीर्थ है जिसमें महाजन संघ के लिये तो उपकेशपुर की भूमी और भी विशेष है । कारण, वहाँ पूज्याचार्य रत्नप्रभसूरि के कर कमलों से महाजन संघ और भगवान् महावीर के मन्दिर की स्थापना हुई थी । महाजन संघ की सहायक देवी सच्चायिका का स्थान भी उपकेशपुर में ही है । अतः महाजन संघ का कर्तव्य है कि साल में एक वार उपकेशपुर की स्पर्शना कर भगवान महावीर का स्नात्र महोत्सव करके लाभ उठावें इत्यादि । सूरिजी के उपदेश का जनता पर अच्छा प्रभाव हुआ । चरड़ गोत्रिय शाह कपर्दी ने उपकेशपुर की यात्रार्थ संघ निकालने का विचार कर सूरिजी एवं श्रीसंघ से प्रार्थना की कि मेरी इच्छा है कि मैं उपकेशपुर का संघ निकाल कर ७६६ Jain Education International [ उपकेशपुर में शाह कर्मादि की दीक्षा www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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