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आचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ८४० - ८८०
दोनों में से एक ही आत्रेगा ? सूरिजी ने सोचा कि अब दिन दिन गिरताकाल श्रा रहा है लोग तुच्छ बुद्धि और छाटावाले होंगे। जब मेरे लिये एक श्रद्दा सम्पन्न श्रावक के विचार बदल गये तो भविष्य में न जाने क्या होगा अतः देवी को प्रत्यक्ष रूप में न आना ही अच्छा है वस सूरिजी ने कह दिया देवीजी आप प्रत्यक्ष रूप से आवे या न यावे पर सोमाशाह को तो सावचेत करना ही पड़ेगा । देवीने सूरिजी का
देश को शिरोधार्य कर सोमा को सावचेत कर दिया । सोमाशाह ने आचार्य श्री के चरणों में शिर रख कर गदगद स्वर से अपने अपराध की माफी मांगी साथ में देवी सच्चायिका से भी अपने अज्ञानता के बस किया हुआ अपराध की क्षमा करने की बारबार प्रार्थना की। सूरिजी महाराज बड़े ही दयालु एवं उदारवृति वाले थे सोमा को हित शिक्षा देते हुए उसके अपराध कि माफि बक्सीस की तथा देवी को भी कहा देवीजी ये सोमा आपका साधर्मी भाई है अज्ञानता से श्रापका अपराध किया है पर ये अपराध पहिली वार है अतः इसको क्षमा करना चाहिये अतः सूरिजी के कहने से देवी शान्त होकर सोमाशाह को माफि दी । बाद सोमाशाह सूरिजी को बन्दन और देवी से श्रेष्टाचार कर अपने स्थान को गया और देवीने कहा पूज्यवर ! मैं हित भाग्यनी हूँ कि आवेश में आकर प्रतिज्ञा करली कि अब मैं प्रत्यक्ष में नहीं आउगी श्रतः मैं आपकी सेवा से वंचित रहूगी यह भी किसी भव के अन्तराय कर्म होगा । खैर प्रभो ! मैं आपकी तो सदा किंकरी ही हूँ प्रत्यक्ष में नहीं तो भी परोक्षपना में गच्छ का कार्य करती रहूँगा । सूरिजी ने कहा देवीजी यह लोक युक्ति ठीक है कि 'जो होता है वह अच्छा के लिये ही होता है' अब गिरता काल श्रावेगा दुर्बुद्धिये और छेगवेषी लोग अधिक होंगे। इस हालत में आपका प्रत्यक्षरूप में आना अच्छा भी नहीं है । आप परोक्षपने ही गच्छ का कार्य किया करो और मैं देवता के अवसर पर आपको धर्मलाभ देता रहूँगा । देवीने सूरिजी के बचनों को 'तथास्तु' कहकर सूरिजी से प्रार्थना की कि पूज्यवर ! आपके दीर्घदृष्टि के विचार बहुत उत्तम हैं भविष्य काल ऐसा ही आवेगा कारण वह हुन्डा सर्पिणी काल है न होने वाली वाले होगा अतः मैं एक अर्ज और भी आपकी सेवा में कर देती हूँ कि अपने गच्छ में आचार्य रत्नप्रभसूरि और यक्ष देवसूरि आज पर्यन्त महाप्रभाविक हुए है अब ऐसे प्रभाविक आचार्य होने बहुत मुश्किल हैं अतः इन दोनों नामों को भंडार कर दिये जाय कि भविष्य में होने वाले आचार्यों के नाम रत्नप्रभसूरि एवं यक्षदेवसूरि नहीं रक्खा जाय और दूसरा इस गच्छ में उपकेशवंश में जन्मा हुआ योग्य मुनि को ही आचार्य बनाया जाय। देवी का कहना सूरिजी के भी जचगया और आपश्री ने कहाँ ठीक है देवीजी अपका कहना मैं स्वीकार करता हूँ और हमारे साधुओं तथा श्री संघ को सूचीन कर दूँगा कि अब भविष्य में होने वाले श्रावायों के नाम. रत्नप्रभसूरि एवं यक्षदेवसूरि नहीं रखेगा । और उपकेश वंश में age योग्य मुनि को आचार्य बनाने का पूर्वाचार्यों से ही चला आ रहा है अब और भी विशेष नियम बना दिया जायगा तत्पश्चत् सूरिजी को बन्दन कर देवी अपने स्थान को चली गई बाद आचार्य श्री ने विचार किया -- कि भगवान् महावीर का शांसन २१००० वर्ष तक चलेगा जिसमें अभी तो पूरा १००० वर्ष भी नहीं हुआ है जिसमें भी शासन की यह हालत हो रही है जैसे एक ओर तो महावीर के सन्तानियों में कई गच्छ अलग अलग हो कर संगठन बल को छिन्न भिन्न कर रहा है दूसरी तरफ पार्श्वनाथ सम्तानियों की भी अलग अलग शाखाएँ निकल रही हैं जो उपकेश और कोरंट गच्छ ही था जिसमें कुंकुंदाचार्य नया श्राचार्य बन गया । भजे वह विद्वान एवं समझदार है पर उनकी सन्तान में न जानने भविष्य में यह सम्प बना रहेगा या नहीं ! इधर देवी प्रत्यक्ष में आना भी बन्ध हो गया है इत्यादि दिन भर आपने शासन का
रत्नप्रभसूरि यचदेवसूरि के दो नाम ]
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