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________________ आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन । [ओसवाल संवत् ७१०-७३६ २७–प्राचार्य यक्षदेवसूरि ( पांचका) भूर्याख्यान्वयभूषणं सुचरितः सूरिस्तु यक्षोचरः । देवो दीर्घतयाः प्रभावमहितो नित्यं स्वधर्मे रतः ॥ तेनैवेय मिहागमज्जनतथा साकं सुभूपेन्द्रता । सेवायां स हि वन्दनीय चरितः कल्याणकारी प्रभुः ॥ Food DBOOR DDO प्राचार्य यक्षदेवसूरीश्वर एक यक्षपूजित महान प्रतिभाशाली धुरंधर विद्वान और योग विद्या में निपुण आचार्य हुये । पट्टावलीकारों ने आपके जीवन के @ @@@ विषय में बहुत विस्तार से वर्णन किया है पर ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से मैं POOOD यहाँ आपका पुनीत जीवन संक्षिप्त से ही लिखता हूँ। सिन्ध देश में धन धान्यपूर्ण वीरपुर नाम का नगर था वहाँ पर उपकेशवंशी भूरि गोत्रिय शाह गोशल नाम का धनकुबेर सेठ बसता था । शाह गोसल के पूर्वज पांचवों पुश्त लल्ल नाम का पुरुष हुआ और किसी कारण से वह उपकेशपुर का त्याग कर सिन्ध में आया और वीरपुर को अपना निवास स्थान बनाया । शाह लल्ल ने अपने आत्मकल्याण के लिये वीरपुर में भगवान पार्श्वनाथ का एक मन्दिर बनाया था। उस जमाने में यह तो एक जैनों की पद्धति ही बन गई थी कि जहाँ जाकर वे वसते वहाँ अपने मकान के पहिले जैन मंदिर की नींव डालते । शाह लल्ल के इतने पुण्य बढ़ गये कि एक ओर तो परिवार बढ़ता रहा तब दूसरी ओर धन भी बढ़ता गया । गोसल के समय भूरि गोत्रिय शाह लत्ल की संतान में परिवार सम्पन्न और धन धान्य से समृद्ध एक सौ घर होगये थे । शाह गोशल के दो स्त्रियां थीं, एक उपकेशवंश की जिसका नाम जिनदासी था तब दूसरी क्षत्रिय वंश की जिसका नाम राहुली था गोशल की वीरता एवं कार्यकुशलता से वहाँ का राव कोक ने गोसल को मंत्री पद पर नियुक्त कर दिया। शाह गोशल की जिनदासी स्त्री के सात पुत्र और दो पुत्रिये थीं तब राहुली के चार पुत्र थे जिसमें धरण नामक पुत्र एक विलक्षण ही था अर्थात् उसका तप तेज पराक्रम सब क्षत्रियोचित ही था। धारण एक समय किसी विवाह प्रसंग पर अपने मामाल गया था। वहाँ कई भाई और कई सगा सम्बन्धी एकत्र हुए थे और राजपूतों का भोजन मांस मदिरा की मनुहारो हो रही थी। किसी ने धारण को भी इस कार्य में शामिल होने को कहा पर धारण के तो संस्कार ही ऐसे जमे हुये थे कि वह इन अभक्ष्य पदार्थों से घृणा करता था । धारण ने कहा कि यह मनुष्यों का नहीं पर राक्षसों का भक्ष्य है । बड़ी शरम की बात है कि राजपूत जैसी पवित्र एवं उच्च जाति कि जिस वंश में चौबीस तीर्थंकर एवं भगवान् रामचन्द्र श्रीकृष्ण पाण्डव वगैरह महापुरुषों ने अवतार लेकर दुनिया में अहिंसा धर्म का प्रचार किया जिनका उज्ज्वल यश वड़े बड़े ऋषि मुनि गा रहे हैं । बड़ी लज्जा की बात है कि उनकी संतान श्राज निर्दयतापूर्वक विचारे मूक प्राणियों के कोमल कंठ पर छुरेचलाकर अर्थात् उनका मांस भक्षण करने में खुशी मना रही है । पर याद रक्खो इसका फल सिवाय नरक के और क्या हो सकेगा इत्यादि खूब फटकारा। आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ] ७४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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