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आचार्य कक्कसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ८४०-८८०
उसके हाथ की बात है पूर्व भव की अन्तराय हो तो एक क्यों पर दस पत्नियें कर लेने फिर भी पुत्र नहीं होता है । फिर व्रत भंग करने में क्या लाभ है ?
___ सेठानी-मैंने तो आज पर्यन्त ऐसा कोई पुरुष नहीं देखा है कि इस प्रकार का पत्निव्रत धर्म पालन किया एवं करता हो जैसे आप फरमाते हो ?
सेठजी-आपने व्याख्यान में युगल मनुष्यों का अधिकार नहीं सुना है कि वे अपने दीर्घ जीवन और बऋषभनाराज संहनन में भी एक पनि के अलावा दूसरी पत्नी नहीं की थी। वे ही क्यों पर कर्म भूमि में भी एसे बहुत से पुरुष हुए हैं देखिये-मैंने सुना है एक संठ दिसावर जाने का विचार किया तो उसकी पनि ने कहाकि अच्छा आम वापिस कब आयेंगें ? सेठजी ने कहा कि मैं तीन वर्ष के बाद आऊंगा। सेठानी ने कहा कि मेरी युवावस्था है यदि तीन वर्ष के बाद भी आप नहीं पधारों तो मैं क्या करू यह बतला जाओ ? सेठजी ने कहा यदि मैं तीन वर्ष तक में नहीं आऊँ तो नगर से दो माईल टी जाने वाले के पास अपनी काम वासना शान्त कर सकती है । बस सेठजी दिसावर चले गये पर किसी जरूरी कार्य एवं लोभ दसा के कारण सेठजी तीन वर्ष के बाद भी वापिस नहीं आये । सेठानी ने तीन वर्ष तो ठीकानि काल दिये क्योंकि उसके पति ने वायदा किया था। सेठानी ने अपनी दासी से कहा कि यदि कोई नगर से दो माईल भर दूरी टटी जाने वाला हो उसको अपने यहां ले आना । सेठानी ने स्नान मज्जनादि सोलह श्रृंगार किया शय्या पलंगादि सब सजावट अच्छी तरह से की इधर दासी एक सेठ जो दूर जंगल जाने वाला था उसकों बुलाकर ले आई सेठजी को इस बात की मालुम नहीं थी उन्होंने सोचा कि सेठजी बहुत दिनों से दिसावर गये हैं तो कोई पत्र लिखने वगैरह का काम होगा वे चले आये परन्तु मकान पर जाकर वहाँ का रंगढंग देखा तो उन्होंने सोचा की मेरे तो पत्निवत है । सेठ ने अपने हाथ में जो मिट्टी का लोटा था उसको भूमि पर डाला कि वह फूट गया जिसको देख सेठजी बहुत पश्चताप किया । कामातुर सेठानी ने कहा सेठ जी इस मिट्टी का बरतन के लिये इतना बड़ा पश्चाताप क्यों करते हो मैं आपको चान्दी या सोना का लोटा देगी आप अन्दर पधारिये । सेठजी ने कहा कि मैं मिट्टी का वरतन के लिये ये दुःख नहीं करता हूँ पर मेरा गुंजप्रदेश मेरी पनि या इस मिट्टी का लोटा ने ही देखा है यह फूट गया तब दूसरे को दीखा ना पड़ेगा इस बात का मुझे बड़ा भारी दुःख एवं लज्जाआति है । सेठानी ने सुनते ही विचार किया कि एक मर्द है वह भी अपना गुंज स्थान निर्जीव वरतन को दीखाने में इतनी लज्जा एवं दुःख करता है तो मैं एक कुलीनस्त्री मेरा गुंम प्रदेश दूसरे पुरुष को कैसे दीखा सकती हूँ । बस सेठानी की अकल ठीकाने ओगई और सेठजी को अपना पिता बना कर जाने की रजा दी। इस उदाहरण से आप ठीक समझ सकते हो कि संसार में पुरुष भी पत्निव्रत धर्म के पालने वाले होते है प्रिय संठानी जी ! आपतो विद्यामान है परन्तु कभी आपका देहान्त भी हो जाय तो मैं मन से भी दूसरी पनि की इच्छा नहीं करूँगा। सेठानी सेठाजी की दृढ़ता देख बहुत खुशी हुई । और सेठजी प्रति उनका स्नेह और भी बढ़ गया। सेठानी ने कहा-पतिदेव आपके कहने से मुझे अच्छी तरह से संतोष हो गया है और मैं समझ भी गई हूँ कि पूर्व संचित कर्मों की अन्तगय है वहाँ तक कितने ही प्रयत्न करे कुछ भी नहीं होगा। खैर सेठानी ने सेठजी को कहा कि जो पिछे नाम रहने के लिए दो कार्य बतलाये है वे तो प्रारम्भ कर दीजिये कि इसके अन्दर थोड़ी बहुत लक्ष्मी लगाकर भवान्तर के
सेठजी की दृढ़ता का सेठानी पर प्रभाव ]
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