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वि० पू० १८२ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
गोड़ा ज्ञान एकत्र कर भोजपत्र, ताड़पत्र, और वल्कल पर अक्षरों से लिपि बद्ध करके भिक्खुराय का मनोरथ किया और इस प्रकार वे आर्य सुधर्म रचित द्वादशांगी के संरक्षक हुए |
१ - उसी प्रसंग पर श्यामाचार्य ने निर्बंध साधु साध्वियों के सुखबोधार्थ 'पन्नवणासूत्र' की रचना की || २- स्थविर श्रीउमास्वातिजी ने उसी उद्देश्य से नियुक्ति सहित 'तत्वार्थ सूत्र' की रचना की २ ३ - स्थविर आर्य बलिस्सह ने विद्याप्रवाद पूर्व में से 'अंगविद्या' आदि शास्त्रों की रचना की ३ | इस प्रकार जिन शासन की उन्नति करने वाला भिक्खुराय अनेक विधि धर्म कार्य करके महावीर निर्वाण से ३३० वर्षो के बाद स्वर्गवासी हुआ । भिक्खुराय के बाद उसका पुत्र वक्रराय कलिंग का अधि पति हुआ । वक्रराय भी जैनधर्म का अनुयायी और उन्नति करने वाला था । धर्माराधन और समाधि के साथ यह वीर निर्वाण से ३६२ वर्ष के बाद स्वर्गबासी हुआ । वक्रराय के बाद उसका पुत्र 'विदुहराय'५ कलिंग देश का अधिपति हुआ । विदुहराय ने भी एकाम चित्त से जैनधर्म की आराधना की निर्मथ समूह से प्रशंसित यह राजा महावीर निर्वाण से ३९५ वर्ष के बाद स्वर्गवासी हुआ ।"
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"वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना पृष्ट १६६-७५”
आरम्भ होता है जो
पंचवी पर चण्डराय
का और मगद का मूर्ति ले आना एवं
उपरोक्त पट्टावली में कलिंग का राजवंश राजा चेटक के पुत्र शोभनराय से कलिंग पति सुलोचन ने अपने दमाद को कलिग पति बनाया था उस शोभनराय के आगे खेमराज बुद्धराज और भिक्षुराज ( खारवेल ) तथा इसके पुत्र विक्रराय बदुहराय नन्दराजा कलिंग से जिनमूर्ति ले जाना और पुष्पमित्र के समय खारबेल वापिस मगद से श्रार्य सुम्थी और सुप्रतिबुद्ध की अध्यक्षता में कुमार कुमारी पर्वत पर श्रमण एवं चतुर्विध दृष्टिवाद अंग का उद्धार करवाना आदि आदि वर्णन आता है यह सब वर्णन हस्ती गुफा का खारबल का शिलालेख से बराबर मिलता हुआ है अतः इस पट्टावली की घटना ऐतिहासिक घटना होने में संदेह करने को थोड़ा भी स्थान नहीं मिलता है। अब आगे चलकर हम कलिंग प्रदेश की शोध खोज से जो ऐतिहासिक घटनाएं मिली हैं उसका उल्लेख करेंगे ।
संघ एकत्र होना
(१) श्यामचार्य कृत 'पन्नवण सूत्र' अब तक विद्यमान है ।
( २ ) उमास्वातिकृत 'तत्वार्थ सूत्र' और इसका स्वोपज्ञ भाष्य अभी तक विद्यमान है। यहाँ पर उल्लिखित 'निर्युक्ति' शब्द संभवतः इस भाष्य के हो भर्थ में प्रयुक्त हुआ जान पड़ता है ।
( ३ ) अङ्गविद्या प्रकीर्णक भी हाल तक मौजूद है । कोई नौ हजार श्लोक प्रमाण का यह प्राकृत गद्य पद्य में लिखा हुआ 'सामुद्रिक विद्या' का ग्रन्थ है ।
( ४ ) कलिंग देश के उदयगिरि पर्वत की मानिकपुर गुफा के एक द्वार पर खुदा हुआ वक्रदेव के नाम का शिलालेख मिला है जो इसी वक्रराय का है । लेख नीचे दिया जाता है :
"वेरस महाराज कलिंगाधिपतिनो महामेघवाहन वक्रदेव सिरिनो लेणं ।” ( जिनविजय सं० प्राचीन जैनलेख पृ० ४६ ) (५) उदयगिरि की मचपुरी गुफा के सातवें कमरे में विदुराय के नाम का एक छोटा लेख है । उसमें लिखा है कि यह लयन (गुफा) 'कुमार विदुराय' की हैं। देख के मूल शब्द नीचे दिये जाते हैं:
"कुमार बदुश्वस लेनं" ( एपिग्राफिका इंडिका जिल्द १३ )
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