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आचार्य रत्नप्रभसरि का जीवन ]
[वि० पू० ४०० वर्ष
२-पार्श्वनाथ की मूर्ति जो मूल मन्दिर में थी वह सामने की देहरियों के पीछे एक ताक में विराजमान कर दी,वह आज भी उसी स्थान में विराजमान है जिसका यह फोटू सामने दिया गया है। यदि पार्श्वनाथ का मन्दिर नहीं होता तो वहाँ पार्श्वनाथ की मूर्ति क्यों होती ?
३-इस मन्दिर के पीछे एक उपाश्रय के खण्डहर हैं. टूटे हुये स्थभा पर एक शिलालेख खुदा हुआ है कि किसी श्रावक ने महावीर की रथयात्रार्थ यह उपाश्रय करवाया था। इससे भी पाया जाता है कि उस उपासरे में जैन श्रमण रहते होंगे और महावीर के मन्दिर की रथयात्रा निकलती थी वह इस पार्श्वनाथ के मन्दिर तक आकर रात्रि यहाँ ठहर भजन भक्ति और स्वामिवात्सल्य करके दूसरे दिन वापिस जाती थी।
४-मन्दिर और प्रकोट के बीच देवी के मन्दिर के चिन्ह भी इस समय नजर आ रहे हैं। ५-इस मन्दिर की शिल्पकला भी जैन मन्दिरों से मिलती जुलती है।
६-मारवाड़ में इस मन्दिर के सदृश देवी का कहीं भी मन्दिर नहीं है पर जैन मन्दिर बहुत से नजर आते हैं । अतः यह मन्दिर पार्श्वनाथ का ही था जिसको आज देवी का मंन्दिर कहा जाता है। उपकेशपुर से श्री शत्रुजय तीर्थ का विराट् संघ___एक दिन सूरीश्वरजी महाराज ने अपनी ओजस्वी वाणी द्वाग जैनतीर्थकी यात्राका उपदेश दिया और पूर्व जमाने में भरत, सागर,राम, पांडवादि एवं नयसेन नरेशों के यात्रार्थ निकाले संघों का बड़ी खूबी से व्याख्यान दिया जिसका प्रभाव इस कदर हुआ कि वहां की जनता को यात्रा करने की एकदम उत्कंठा हो आई । भला राजा उत्पलदेव अपनी वृद्धावस्था में ऐसा सुअवसर कब जाने देने वाले थे। आपने सूरिजी की सम्मति लेकर तीर्थों के संघ की तैयारियां कर ली और सकल श्रीसंघ को आमन्त्रण भी भेज दिया । जिनके पास राजसत्ता हो उनके सामग्री का कहना ही क्या है ? वंशावलियों में इस संघ का वर्णन करते हुए लिखा है कि करीब एक लक्ष भावुक तो संघ के प्रस्थान समयही थे। कई ५००० साधु साध्धियाँ और कई देरासर संघमें साथ थे जिसके नायक थे आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि एवं श्री कनकप्रभसूरि । संघपति पद महाराजा उत्पलदेव को दिया गया था । शुभ मुहूर्त में संघ ने प्रस्थान कर दिया संघ के लिए सब इन्तजाम राजा उत्पल देव की ओर से हा था। जैसे जैसे संघ आगे बढ़ता गया वैस २ नर नारियों की संख्या भी बढ़ती गई । मानो तीर्थ यात्रा के लिए मानव मेदनी उलट गई हो । कारण, इस प्रदेश में पहले ऐसा संघ कभी नहीं निकला था। दूसरे लोगों को महान पवित्र सिद्धगिरी के दर्शन की भी उत्कंठा थी। अतः सिद्धक्षेत्र में संघ पहुँचा तो वहाँ करीब पांच लक्ष जनता संघ में एकत्र हो गई थी । रास्ता में अनेक स्थानों में संघ का शानदार स्वागत भी हुआ था हीरा पन्ना माणक मोतियों से तीर्थ को बधाया कई दिन यात्रा का आनन्द लुटा कइ स्वामिवात्सल्य हुए तीर्थ पर संघमालादि महोत्सव हुए तत्पश्चात् संघ आनन्द से यात्रा कर वापिस लौटकर उपकेशपुर आया। नाशकन्मण्डपे छन्ने, नमस्युत्पतितुंमुनिः । तरवारि करैर्लेच्छः, सआहत्य निपातितः ।। ततोदेवप्रभावेण, सुप्रतिष्ठाविशेषतः । मध्येप्रवेष्टुंजवना, नशेकुर्गर्भवेश्मनः ॥ उ० च०
* सं० १२४५ फाल्गुनसुदि ५ अद्येहश्रीमहावीर रथशाला निमित्तं ................ पाल्हियाधति देवचंद बंधू यशधर भार्या सम्पूर्ण श्राविकया आत्म श्रेयाथ समस्त गोष्ठि प्रत्यक्षं च आत्मीया स्वजन वर्ग समतेन आत्मीय गृहं दत्। शिलालेख वा० पू० खं० १ पृष्ठ १९६ लेखांक ८०७
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