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________________ सत्रति का राज्याभिषेक २६० | सूरिजी चन्द्रावती में संगति की राज्य व्यवस्था सम्राट को राजधानी सत्यकेतु वि० का मत सम्राट का धार्मिक जीवन सुहस्री उज्जैन में सम्प्रति को जातिस्मरण जैन धर्म स्वीकार करना जैन धर्म का प्रचार मन्दिरों का जीर्णोद्धार नये मन्दिरों का निर्माण narara का संघ सुदर्शन तालाब उज्जैन में संघ सभा धर्म प्रचार का आयोजन शुभोंको मुनिवेष पहना कर अनार्य देशों को भेजना मुनियों का अनार्य देश में विहार वापिस आयें साधुओं के उद्गार अनार्य देशों के प्रमाण धर्मोपदेश स्थान २ पर शिलालेख मौर्य वंश का समय सिद्धाचार्य की दीक्षा सिद्धाचार्य को सूरिपद 1. देवगुप्तसूरि मरूधर में उपकेशपुर का राव सारङ्ग ५० नर नारियों की दीक्षा कोरंटपुर में देवगुप्तसूरि सोमप्रभसूरि से मिलान २९२ जिनदेव के द्वारा शत्रुञ्जय का संघ २९३ | सिद्धसूरि का आगमन २९४ Jain Education International २९६ वररुचि की माया ३०० ३०२ दोनों में विद्याविवाद शिवाचार्य की जैन दिक्षा मुनिरश्न को सूरि पद सिद्धसूरि का स्वर्गवास संघ शत्रु जयतीर्थ पर देवगुप्त सूरि का स्वर्गवास पांच आचार्यों के नाम एवं काम [७] आर्य्य स्थूलभद्रस्वामी ३२१ | ११ - आचार्य रत्नप्रभ सूरि ३३३ मन्त्री शकडाळ (वि. पू. २१७-१८२) कच्छ राजा का पुत्र दीक्षा और सूरिपद सूरिजी का सिन्ध में कर्माशाह का कथन सूरिजी पंजाब में भावास्ति में शास्त्रार्थ - स्थूलभद्र और वैश्या ३०७ ९ - आचार्य देवगुप्तसूरि ३१२ वैश्या का नाच करना ( वि० पू० २८८ - २४७ ) ३१३ शकडाल की सत्यता श्रीयक का विवाह गलत फहमी फैलाना डाल की दीर्घ दृष्टि पूर्व प्रान्त मे दुष्काक श्रमणों का पश्चिम में स्थूलभद्र को पदवी स्थूलभद्र की दीक्षा वैश्या के यहां चतुर्मास शकडालकापुत्र द्वारा मृत्यु ३२४ आर्य सुहस्ती और सम्प्रति उज्जैन में संघ सभा आमन्त्रण गुरु का दुक्कर २ कहना सिंह गुफावाली वैश्या के यहां वैश्या का बुरा प्रभाव नेपाल की रत्न कम्बल मुनि को प्रतिबोध रथिक का आम्र तोड़ना एक मार्मिक गाथा स्थूलभद्र की सात बहिनें १० - आचार्य श्री सिद्धसूरि [वि. पू. २४०-२१७] चंद्रपुरी का राजकुमार सिद्धाचार्य - शास्त्रार्थ - ३१४ जैनदीक्षा गच्छ नायक उपकेशपुर का चतुर्मास पल्हिका में संघ सभा ३१७ चंद्रावती में शिवाचार्य यज्ञ का उपदेश मंत्रो का कोश उत्तर ३१९ सिद्धसूरि चंद्रावती में For Private & Personal Use Only वीर क्षत्रियको दीक्षा मुनि रल की कठोर तपश्चर्या उपकेशपुर का राव सारङ्ग सूरिपद व ६४ दीक्षाएं ३२५ प्रसूरि आवन्तिको ओर स्वागत और वार्तालाप प्रभसूर और सुदस्ती सूरि सम्राट सम्प्रति और रत्नप्रभसूरि सूरिजी के व्याख्यान का प्रभाव सूरिजी का विहार छोहाकोट में चतुमस मन्त्रीश्वर का संघ ३२७ | तीर्थ पर सूरि पद पूर्व की भोर विहार ३३१ ३२९ | सूरिजी का स्वर्गवास ३३४ ३३७ ३४० ३४१ [[८] आर्यं महागिरि सुहस्ती ३४४ सम्प्रति की दान शालाएं आचार्यों का विसंभोग समय के लिये विचार भेद अवंति सुकुमाल की दीक्षा अवंति पार्श्वनाथ का मंदिर सामली विहार राजा श्रीचंद और श्रीमति नवकार मंत्र और पूर्व भव मुनिसुत्र तस्वामी का मंदिर ३४७ ३४९ www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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