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अपार।
तीर्थ माला संग्रह अोला अोली मांडणी, शिखर बंद प्रासाद । हाथी झूले मल पता, मोडे कु मतिना उन्माद ॥३॥ जात्रा भली बहु जुगतसु, देहरी तेर विस्तार । पास जिराउल वांदतां, होवे सफल अवतार ॥४॥ मुझ मन हर्ष अपार। अरहट वाडे वांदिया, दुःख भंजन महाराज । भेट्या गांम पोसालिये, श्री चन्द्र प्रभ जिनराज ॥५।। गोमो गांमे वांदतां, शांति ऋषभ जिन देव । वाहली नगरे आवीने, दोय जिन मंदिर सेव ॥६॥ सादडी नगरे भेटवा, शिक्खर बंध प्रासाद । श्री पार्श्व नाथ जी वांदतां, मन उपनो आल्हाद ।।७।। नगर बाहर दोय देहरा, भेटयां जिन वरदेव ।
तीन कोस डुगर विचे, रांण पूरानि सेव ॥८।। ढाल
नेक नजर करो नाथ जी । ए देशी ॥ राण पुरो रलियामणो संघ जात्रा करे भलि भांत सुजी हो । ए तीरथ सुहांमणो सुहांमणांने रलियां मणां जी होए ती.॥ एहनी अोपमा नहिछे जगत में, रूडी मांडणी छे बहु जात सुजी हो । गढमढ तोरण जालिया, जांणे स्वर्ग मंडे वादने जी हो ॥एती.॥ नल नी गुल्म विमान, गुहिरो गाजे छे घणु नादने जी हो ।एती.॥ तीन चोमुख रुडा शोभता, रंग मंडप चोवीश में जी हो ।।एती.।। भमती फरती फूटरी, रूडा सिखर सोभे स्वर्गवास में जी हो ।एती.॥ आजनो दिन रलीयांमणो, मैं तो भेटया श्री जिनराज ने जी हो ॥. जुगला धर्म निवारणो, ऋषभ जिणंद महाराज ने जी हो ।ती.॥ केसर चंदण घसी धरणा, प्रांगियां रचावु घणे होडसुजी हो ॥ती.।। पूजा भगति ने करो लुछणा, अरज करे कर जोडने जी हो ।।ती.।। धन धन्नो साह सोरोमणि,
जिणे किधा तीर्थ मंडाण ने जी हो ॥तीर्थ.।। धननो लाहो लेइकरी, जेणे स्वर्ग सुकर्या संधारण ने जी हो ॥तीर्थ.।।
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