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________________ तीथं माला संग्रह रंग मंडप ने आलीइं, तिहां तेर जिनेशा । पाछल भमती मांहे छे, नमीइं शुभ वेशा ॥२६॥ जिन पंचास कह्या भला, नंदीश्वर द्वीप । बावन पडिमा तेह मां, नमी कर्म ने जीप ॥३०॥ समेत शिखर नो थापना, तिहां वीस जिणंदा । चोवीसवटा दोय छ, प्रणमें आनंदा ॥३१॥ श्री पदमावती वंदीइं, दोय गणपति सारा । ए सहू पाछल जोई ने, नमि निकसो द्वारा ॥३२॥ नेम ने सन्मुख मंडपे, चौदसयां बावन । गणधर पगलां सोहतां, प्रणमो भवि जन्न ॥३३॥ पासें एक छे ओरडी, तेह मां काउसगीया। मोटां अद्भुत सुदरु, मुज मन माहे वसीया ॥३४॥ मूल गभाराने दक्षिण, द्वारे निकली में। प्रबनी हेठल पादुका, नेमजी प्रणमी नें ॥३५।। जोडे मात चक्केसरी, देहरी मांहे सोहे। पाछल देहरी एक छे, दोय पगलारे मोहें ॥३६॥ ऋषभ नां नमी ने चालीइं, पूठे देहरी एक । राजीमतीनी पादुका, संगे देहरु नजीक ॥३७॥ गोवर्धन जगमाल नु, जिनऋषभ स्यु पांच । आगल देहरी दोय मां, दोय पगला रे वाच ॥३८॥ पाछल देहरी तेहमां, प्रणमु ऋषभ नां पगलां । प्रेमचन्द साहें थापीयां, श्रावक नमे सघलां ॥३६॥ नेमनी पाछल भोयरे, अमीझर जिन पास । संगे पडिमा तीन छे, नमतां शिव तास ॥४०॥ ऊपर जीवित स्वामी नी, मूरति सुखकारी। बीजी रहनेमी तणी, सूरत छ प्यारी ।।४१।। मूल कोटनी देहरी, चोरासी धारी। नेउं जिनने वंदीइं, ए छे भव जल तारी ।।४२। नेम थी पूर्व दिशा अछे, दिग अंबर भुवने । पडिमा एक जुहारिइ, ते निरखो रे सुमने ॥४३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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