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तीर्थ माला संग्रह
भंगी-जंगी लोक छ, तिहां ना, रहे नारा । दानादिक करिया नही, नहिं धर्म विचारा ।१४ । ते जोई मारग चालतां, मगि कुन्ड' सोहावे। सिव नां थांनक दीपतां, देहरा त्रण दीपावें ॥१५॥ संकर नागर ते ह नी, बावडी जल पीनो । तिहां विसामो लेइ ने, मुनि ने अन्न दीपो ॥१६॥ पाय धरंता वावडी, संघनी तव प्रावी। विनय विजय नी पादुका, श्री संघे बनावी ॥१७।। तलहटो पूरी थई, नेमिना गुण गाई। त्रण खमासण देई ने, हवें चढीई रे भाई ॥१८॥ चढवा मांडयु जे तले, तव अलीय खपावे । मारग पांडव पांचनी, पंच देहरी आवें ॥१६॥ द्रौपदी नी छट्ठी कही, देहरी दीपावें । आगल अांबली हेठलें, वीसामो रे थावे ॥२०॥ तदनंतर नीली पर्व छ, विसामा सु ठाम । काली पर्व बीजी कही, बेसोगुणी जन ताम ॥२१॥ धोली पर्व त्रीजी जई, नेमना गुण गावो। लाडू अमृत बाई नी, पंचमी मन भावो ॥२२॥ छठी माली पर्व ने, पाछल छे रे कुड । देह शुची करि तेह मां. पेहरी वस्त्र अखंड ।।२३।। नेमने वंदने चालिइं जइ चढीइ सोपांने । मानसिंघ मेघजीइं कीयां, श्रावक चढवा में ॥२४॥ चढतां नेमनी पोलमां सो गुणवाला। जई पच्छिम द्वारे भलु, देहरु सुविशाला ॥२५॥ मांहे प्रावी प्रभु नेम ने, स्तवीइं शुभ बोल । त्रिभुवन माहे जोयतां, नहीं ताहरी तोल ॥२६॥ त्रण कल्याणक ताह रां, हुवां माहाराजां। दीक्षा, ज्ञान ने मोक्ष नां, सुख लीधां ताजां ॥२७॥ ए रीतें स्तवना करी, जुप्रो मूल गभारे । पडिमा त्रण सोहामणी एक धातु नी धारे ॥२८॥
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