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तीर्थ माला संग्रह जीनजी संवत सतर प्रोगण त्रीसें पाटण कीध चोमास हो जिनजी वाचक सौभाग्य विजय वरूँ संघनी पोहती प्रासहो
जिनजी धन-धन० ॥५॥ जिनजी साहा विरुया सुत सुंदर सारामजी सुविचार हो। सुधो समकित जेहनो विनय वंत दातार हो
जिनजी धन-धन० ॥६॥ जिनजी धरम धुरंधर व्रत धारी परगट मल पोरवाड हो जिनजी तेहणे साह ज्यइं करी, कीधी मइ चैत्य प्रवाड हो
जिनजी धन-धन० ॥७॥ जिनजी तवन तीरथ माला तणु कीधु में अति चंग हो जिनजी साहराम जीने आग्रहें मनि धरी अति उछरंग हो
जिनजी धन-धन० ॥८॥ जिनजी तवन तीरथ मालातणु भणइ सुणे वली जेह हो यात्रा तणुफल ते लहइं वाधई धरम सनेह हो ।
जिनजी धन-धन० ॥६।। जिन जी श्री विजयदेव सरी सरनों पाट प्रभाकर सर हो जिनजी श्री विजय प्रभ सूरी जग जयो दिन-दिन चडतांई
नूरही जिनजी धन-धन० ॥१०॥ जिनजी श्री विजयदेव सुरी सरना साधु विजय बुध सीस हो जिनजो सेवक हर्ष विजय तणी पोहती सयल जगीस हो
जिनजी धन-धन० ।।११।। कलश:
इम तीरथ माला गुणह विसाला प्रवर पाटण पुर तणो, मई भगति आणि लाभ जाणी थुणीइं यात्रा फल भणी, तपगच्छनायक सौख्य दायक श्री विजयदेव सूरी सरो साधु विजय पंडित चरण सेवक हर्ष विजय मंगल करो ॥१॥
इति पाटण चैत्य प्रवाडि स्तवन संपूर्ण संवत् १७८३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ३ दिने लिखितं सकल पंडित शिरोमणि पं. श्री १०८ श्री सुमति विजय गणि तत् शिष्य पं. श्री १६ श्री अमर विजय गणि तत् शिष्य पं. सुंदर विजय गरिण लिखितं पाटण मध्ये शिष्य जय विजय पठनार्थं कल्याणमस्तु ॥श्री।।श्री।।श्री।।
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