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तीर्थ माला संग्रह
अष्टापद प्रासाद कई चंद्रप्रभ लही रे, के चन्द्र ।। नव सत उपरि आठ के प्रतिमा तिहां कहीरे ॥प्रति०॥ चन्द्रप्रभु प्रासाद के तेर जिणे सरूं रें, के तेर० ॥ पास नगीनो षट् जिन साथि दिणेसरू रे ॥२॥ शांतिजिणंद प्रासाद, देखी मन हरषीइं रे, मन । चोरासी जिनप्रतिमा तिहां किरण नीरखीइँ रे, किरण ॥३।। आदिनाथ जगनाथ नी मूरति अति भली रे अति । पंचाणु तिहां प्रतिमा बंदी, मन रूली रे, बंदी० ॥४॥ त्रांगडी आ वाडा मांहि, ऋषभ सोहामणारे ऋष०।। बिंब च्यारसे च्यार कई तिहां जिणवर तणारे तिहां ।।५।। देव प्रासाद कंसारवाडे, हवे वंदीई रे, हवे० । शीतल ऋषभ नमी सब, दुख निकंदीई रे, सब० ॥६॥ प्रतिमा तेर अठासी बेहूं देहरा तणोरे, के बेहूं । जिन नमतां घरि लखमी होई, अति घणी रे के लख० ॥७॥ साहना पाडा मांहि, ऋषभ सोहामणा रे, के ऋष० । प्रतिमा दोशत ब्यासी मने संभारिई रे के ब्यासी० ॥८॥ वाडी पास तणो महिमा छे अति घणो रे, के महि । वडी पोसालना पाडा माहि, में श्रवणे सुण्यो रे के श्रव० ॥६।। एक सो सडतालीस तिहां, प्रतिमा अछई रे तिहां० । चो मुख वंदी जिन राज ऋषभनमी ई पछे रे रिष० ।।१०।। दोसत ने पणयालीस, जिन प्रतिमा तिहां रे के जिन० । पंच बांधव नु देहरू, लोक कहें तिहां रे के लो० ॥११।। ढाल
देहरा सर तिहां एक देहरा सरसु विशेष । सेठ भुजबलतणु रे के दोसइ सोहामणुए ।।१।। नारिंग पुर वर पास, जागतो महीमा जास । दोशत बिंब भलाए, पणयालीस गुणनीलांए ॥२॥
मेडा वाडा मांहिं, शांति नमु उछांहि । पंच शत जिन वरु ए एकोत्तरे ऊपरिए ॥३॥
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