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________________ ३८ तीर्थं माला संग्रह मनोहर तव सार मूरति पेखतां मनउ हुलसइ । मुख देखि पूनिम चंद बीहतु गयण मंडलि जइ वसई ॥७॥ अणी यालीरे ऊंची नासा दीपती, जाणु छुके सुय चंचू नई जीपती । बे लोचनरे, अरिणयालां प्रति सुन्दरू, सर वंगि रे वररगन हुँ के कुतु करू |८|| करूं वरन केम तोरू, अनंत गुण नुं तू थणी । मुखि एक जीहा थंव बुद्धिकेम गुरण जाणुं गणी ॥ ॥ मन मोहनरे जगबंधव जगनायक । जगजीवनरे भवि जनने सुखदायक । तुझ दरिसनि रे मनवंछित सुख पामइ, चितामणिरे काम कुंभ नवि कामीइ ॥१०॥ कामीइ जे जे अरथ सघला वीर जिन तुझ नाम थी । पामी कवियरण कहइ भवियण नमई जे तुझ भाव थी ॥ ११ ॥ ढाल: हिव बीजइ जिरण मंदिर जास्युं भावथी रे, प्रति मोटइ मंडारिण । थुणस्युरे नेमि जिस र रे ।।१२।। राजिउ मात सिवादेवि - पूत समुद्र विजय भूपति कुल गयरण दिणे सरुरे, सोह रेर राजीमती वर जीपतां रे ॥ १४॥ विभूषण सार । सुंदरु रे ॥१३॥ मस्त कि मुकट विराजइ हेम रयण तणू रे, काने कुण्डल सार | झलकई रे झलकई रे रवि ससि मंडल हियइ हार तिम बाहि अंगद दीपता रे, अवर पेखीषीरे संघ सहु मनि हरषि रे ।। १५ ।। जा धन धनसार सुधारस नीपनीरे, कय निज जस घनपिंड । सोहइ रे सोहइ रे नेमि जिणेसर मूरतीरे ॥१६॥ चउसय तेडोतर जिन प्रतिमा सोभतूरे नेमि जिणंद दयाल | वंदुरे वंदुरे भवियण भाव धरी सदारे ।।१७।। ढाल: गीत गात नाटक करी नेमि भवनथीरे त्रीइ जिरण हरि मनिरलि जातां बहु संघ Jain Education International For Private & Personal Use Only बलियारे । मिलियारे || १८ || www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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