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श्रीजालोर नगर चैत्यपरिपाटी कर्ता-नगागणि-रचनासे १६५९
श्री गुरु चरण नमी करी, सरसति समरों जइ । कवियरण माडी तुं भली, निरमल मति दी जइ || हरषधरी हुँ रचस्यु हेव, वरचिय परिवाडी । मन वंछित सुख वेलितणी, वाधइ वर वाडी ॥ १ ॥ सोहइ जंबूदीप भलु, जिम सोवन लांबु जोयण लाख एक, तेतु ते वचि मेरु महीधरु, जोयण भरत षेत्र दक्षिण दिसिं, तेहथी मध्यम खंडि नयर घरणां नवि जाणुं
थाल ।
सुविसाल ||
लख तुंग ।
लखिमी
भलु,
वाडी वन
श्री जालुर नयर भलु, सोवन गिरि पासई वनस पती बहु जाती भाति, दीठ्ठइ मन मढ मंदिर पायार सार, धनवंत न्याय वंत ठाकुर भलु जागइ सावय साविय धरम वंत, दातार दयावंत दीसइ घरणा,
चंडया चउसाल सार, पोषध साला च्यारि भली पंचय जिणहर दीपतां, तलिया तोरण तेज पुंज,
ढाल:
हिव पहिलेरे जिरण हरि
वंदंतां
पंचाणुरे
वचि
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करता
चुकी बहु
दीठइ मन
सोहइ
करि भाक
रे पूजंतां प्रतिमा सहित हुरे वीर
बइ
प्रतिचंग ||२||
पार ।
भंडार ॥
सोहइ ।
मोहइ || ३ ||
निवेस |
सविसेस |
अपार ।
उपगार ||४||
सोहइ ।
मौहइ ॥
सुविसाल ।
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झमाल ॥५॥
त्रिसला
संकट
हरू ॥
सरू ।
जिणे जिणंद मनोहरू ॥६॥
कूं यरू ।
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