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॥ श्री॥ श्रीशजय तीर्थमार्ग चैत्यपरिपाटी
मेडता से शत्रुञ्जय तक दुहा:श्री जिन वदनांबुज सुरी, सुणि सरसति रंगरेलि । मुझ मन मानस झीलती, करि मुख कमले केलि ॥१॥ ब्रह्मसुता मुझ मुख वसी वध्योते वचन विलास । जिन गुण माला गुंथतां, अधिक थयो उल्लास ॥२॥ ढाल सोरठि:-- मरुधर धरा भाल ललाम, मेदिनीपुर अति अभिराम । उत्तंग तोरण प्रासाद, मांडे सरग समोवडिवाद ॥३॥ राजा तिहां अरि करि सिंघ, जयवंतो जसवंत सिंघ । तिहाँ बसे रे वडा व्यवहारी, पुन्यवंता पर उपगारी ॥४॥ तिण मांहि धुरंधर धीर हरषाउत गुण गंभीर । संघवी नेमीदास सुजाण सामीदास विमलदासजाण ॥५॥ बंधव मिली करे विचार, निसुरणी शेत्रुजय अधिकार । पूरव पद उज्वल कीजे, लक्षमीरो लाहो लीजे ॥६॥ इम मनह मनोरथ कीघो, संघपतिनो बीडो लीधो । जिन पूजी करे मंडारण, देशमाहि कराव्यउं जाण ॥७॥ शुभ मुहूर्त शकुन प्रमाण, पहिलु हिव कीध प्रयाण । संघ मिलिउ बहुतस मेलो, जालोर थयो सहु भेलो ।।८।। प्रज्या तिहां पंच विहारि जिन फाग रमै नर नारि। सोवन गिरि वीर जुहार्या, भवपातक दूर निवार्या ॥६॥ संघ केरा वंछित फलिया, मुनिजन परिण साथे मिलिया। साचोर थिराने जइये, प्रभु पूजी निर्मल थइये ।।१०।। राधनपुर ने वलि समिइ, अरिहंते कचित्ते नमिई । हवि पास पूजण जण रसिया, एक एक थी पागल धसिया ।।११।। ढाल राग काफी:श्री संखेसर पास जी रे लाल, तु प्रभु त्रिभुवन तात
___ मन मोह युं रे। महिमा महिमा महमहे रे लाल, जगजन प्रावइ जात मन० ।।१२।।
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