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तीर्थ माला संग्रह दिखला कर राजा को शक्ति और सजावट को निस्तेज बना कर उसके अभिमान को नष्ट कर दिया राजा ने देखा इन्द्र की शक्ति के सामने मेरी शक्ति नगण्य है, भला सूर्य के प्रकाश के सामने छोटा सा सितारा कैसे चमक सकता है । उसने अपने पूर्व भव के धर्म कृत्यों की न्यूनता जानी और भगवान महावीर का वैराग्यमय उपदेशामृत पाकर संसार का मोह छोड़ कर श्रमण धर्म में दीक्षित हो गया।
दशार्ण कूटकी जिस विशाल शिला पर इन्द्र का एरावत खड़ा था उस शिला में उसके अगले पैरों के चिन्ह सदा के लिए बन गए, बाद में भक्त जनों ने उन चिन्हों पर एक बड़ा जिन चैत्य बनवाकर उसमें भगवान महावीर की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई, तब से इस स्थान का 'गजाग्रह पद' तीर्थ सदा के लिये अमर हो गया। ___ आज यह गजाग्रह पद तीर्थ भूला जा चुका है, यह स्थान भारत भूमि के किस प्रदेश में था यह भी निश्चित रूप से कहना कठिन है, फिर भी हमारे अनुमान के अनुसार मालवा के पूर्व में और आधुनिक बुन्देलखण्ड के प्रदेश में कहीं होना संभवित है । (४) धर्म चक्र-तीर्थ
आचारांग नियुक्ति सूचित यह चौथा धर्मचक्र तीर्थ है, धर्मचक्र तीर्थ की उत्पत्ती का विवरण आवश्यक नियुक्ति तथा उसकी प्राचीन प्राकृत टोका में नीचे लिखे अनुसार मिलता है
'कल्लंस विड्डीए पूए महऽदछु धम्म चक्कं तु । विहरइ सहस्स मेगं छउमत्थो भारहे वासे ।।३३५।।'
अर्थात् (भगवान ऋषभदेव हस्तिनापुर से विहार करते हुए पश्चिम में बहली प्रदेश की राजधानी तक्षशिला' के उद्यान में पधारे, वन पालकने राजा बाहुबलि को भगवान के आगमन की बधाइ दो, राजा ने सोचा ! कल सर्वऋद्धि विस्तार के साथ भग१. आधुनिक पश्चिम पंजाब के रावलपिडि जिले में 'शाह की ढेरी' नाम
से जो स्थल प्रसिद्ध है वहीं पर प्राचीन तक्षशिला थो ऐसा शोधकों ने निर्णय किया है।
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