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तीर्थ माला संग्रह
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सज्जरणो दंडा हिवो ठाविप्रो । तेण अ अहिरणवं नेमि जिणंद भवर एगार सय पंचासोए (१९८५) विक्कम राय बच्छरे काराविनं । मालव देस मुह मंडणेणं साहु भावडेणं सोवण्णं आमल सारं कारि । चोलुक्क चक्कि सिरि कुमार पाल नरिन्द संठवि सोरट्ठ दंडा हिवेण सिरि सिरिमाल कुलुब्भवेण बारस सय वीसे (१२२० ) विक्कम संवच्छरे पज्जा काराविना । पज्जाए तेहिं जहिं दाहिण दिसाए लक्खारामो दीसई ।" (वि. ती. क. पृ. 8)
अर्थात् - ' पूर्वकाल में गुर्जर भूमिपति चौलुक्य राजा जयसिंह देवने जूनागढ के राजा राव खेङ्गार को मारकर दण्डाधिपति सज्जन को वहां का शासक नियुक्त किया सज्जन ने विक्रम संवत् ११८५ भगवान् नेमिनाथ का शासक नियुक्त किया । सज्जन ने विक्रम संवत् ११८५ में भगवान् नेमिनाथ का नया भवन बनवाया, बाद में मालव भूमि-भूषण साधु भावउ ने उसपर सुवर्णमय आमल सारक बनवाया । '
'चोलुक्य चक्रवर्ती श्री कुमार पाल देव नियुक्त श्री श्रीमाल कुलोत्पन्न सौराष्ट्र दण्डाधिपति ने विक्रम संवत् १२२० में उज्ज - यन्त पर्वत पर चढ़ने के लिए सोपानमय - मार्ग करवाया और उसके पुत्र घवलने सोपान मार्ग में प्याऊ बनवाई, इस पद्या मार्ग से ऊपर चढ़ने वाले यांत्रिक जनों को दक्षिण दिशा में लक्षाराम नामक उद्यान दीखता है ।
इन कल्पोंकों के अतिरिक्त उज्जयन्त तीर्थ के साथ सम्बन्ध रखने वाले अनेक स्तुति स्तोत्र भी भिन्न-भिन्न कवियों के बनाये हुये जैन ज्ञान भाण्डागारों में उपलब्ध होते हैं, जिनमें से थोड़े से श्लोक नीचे उद्धृत करके इस तीर्थ का वर्णन समाप्त करेंगे ।
"योजन द्वय तु गेऽस्य शृंगे जिन गृहावलिः । पुण्य राशि रिवा भाति शरच्चद्रांशु निर्मला ||४|| सौवर्ण दण्ड कलशामल सारक शोभितम् । चारु चैत्यं चकारास्योपरि श्रीनेमिनः प्रभुः ||५||
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